श्री जगत सिंह बिष्ट

(Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker.)

(ई-अभिव्यक्ति के “दस्तावेज़” श्रृंखला के माध्यम से पुरानी अमूल्य और ऐतिहासिक यादें सहेजने का प्रयास है। श्री जगत सिंह बिष्ट जी (Master Teacher: Happiness & Well-Being, Laughter Yoga Master Trainer, Author, Blogger, Educator, and Speaker) के शब्दों में  “वर्तमान तो किसी न किसी रूप में इंटरनेट पर दर्ज हो रहा है। लेकिन कुछ पहले की बातें, माता पिता, दादा दादी, नाना नानी, उनके जीवनकाल से जुड़ी बातें धीमे धीमे लुप्त और विस्मृत होती जा रही हैं। इनका दस्तावेज़ समय रहते तैयार करने का दायित्व हमारा है। हमारी पीढ़ी यह कर सकती है। फिर किसी को कुछ पता नहीं होगा। सब कुछ भूल जाएंगे।”

दस्तावेज़ में ऐसी ऐतिहासिक दास्तानों को स्थान देने में आप सभी का सहयोग अपेक्षित है। इस शृंखला की अगली कड़ी में प्रस्तुत है श्री जगत सिंह बिष्ट जी का एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ आत्म-परिवर्तन की यात्रा।) 

☆  दस्तावेज़ # 25 – आत्म-परिवर्तन की यात्रा ☆ श्री जगत सिंह बिष्ट ☆ 

आज जब मैं ठहरकर, थोड़ा पीछे मुड़कर देखता हूं, तो जीवन एक सरल रेखा जैसा नहीं, बल्कि एक नदी जैसा लगता है—कभी शांत, कभी उफनती हुई—हमेशा प्रवाहित होती हुई। दूर से देखने पर यह एक अनवरत प्रवाह जैसा लगता है, लेकिन यदि ध्यान से उसमें उतरें, तो उसमें किनारे, चट्टान, भंवर और संगम—सब दिखते हैं जो उसकी धारा को आकार देते हैं। मेरा जीवन भी गंगा मैया की तरह प्रवाहमान रहा, जिसमें अनेक मोड़ और आंतरिक रूपांतरण की यात्राएं शामिल हैं।

जिस तरह गंगा का उद्गम गंगोत्री से भागीरथी के रूप में होता है, मेरा जन्म जबलपुर के एक छोटे से उपनगर रांझी में हुआ। मेरे जीवन की शुरुआती धारा शांत थी, सीमित दुनिया में बहती हुई—बिलकुल वैसी जैसे एक छोटी नदी, जिसे ज़्यादा आगे का अंदाज़ा नहीं।

जैसे भागीरथी और अलकनंदा देवप्रयाग में मिलकर गंगा बनती है, वैसे ही जब मैं सोलह वर्ष का हुआ तो जीवन में एक अनोखा मोड़ आया। मेरी मुलाकात ब्रदर फ्रेडरिक से हुई जो स्कूल में मेरे रसायन विज्ञान के शिक्षक थे और मेरे मार्गदर्शक बने। उन्होंने मेरे भीतर की चिंगारी को पहचाना और मुझे प्रेरित किया, “तुम राष्ट्रीय विज्ञान प्रतिभा खोज परीक्षा की तैयारी करो।” यह वाक्य मेरे जीवन का निर्णायक मोड़ बन गया। मुझे राष्ट्रीय स्तर पर स्थान प्राप्त हुआ और जीवन की धारा ने एक नया रुख ले लिया।

इस उपलब्धि ने मुझे ऐसे स्थानों पर पहुँचाया, जिनकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी—जयपुर, चेन्नई और मुंबई में आयोजित ग्रीष्मकालीन  विज्ञान आयोजनों में भाग लेने का मुझे अवसर मिला। प्रतिभाशाली साथियों जैसे अरुनावा गुप्ता, प्रदीप मित्रा और राजीव जोशी के साथ मिलकर मैंने न केवल विज्ञान की गहन समझ विकसित की, बल्कि जीवन को देखने का एक नया नजरिया भी पाया। मेरा एक नया परिचय बन चुका था—एक जिज्ञासु और प्रतिभाशाली विद्यार्थी के रूप में।

परंतु जीवन की धारा हमेशा हमारे हिसाब से नहीं बहती। जीविका की आवश्यकता ने मुझे बैंकिंग की दिशा में मोड़ा। लेकिन यहाँ भी जीवन के पास मेरे लिए कुछ विशेष था। कुछ वर्ष बीत जाने पर, मुझे एक व्यवहार विज्ञान प्रशिक्षक के रूप में चुना गया। यह केवल एक कार्यालयीन उत्तरदायित्व नहीं था, यह एक आमूलचूल परिवर्तन का शंखनाद था। हैदराबाद के स्टेट बैंक स्टाफ कॉलेज में रवि मोहंती, श्रीनिवासन रघुनाथ और शांतनु बनर्जी जैसे गुरुजन हमारे मार्गदर्शक बने।

अगर मेरे शुरुआती वर्ष एक शांत नदी जैसे थे, तो यह जीवन का “ब्लास्ट फर्नेस” चरण था। मैं कच्चा लोहा था—अनगढ़, पर संभावनाओं से भरा हुआ—और उन्होंने मुझे तपाया, ढाला, और मजबूत किया। मेरे साथी– रघु शेट्टी और प्रकाश दिवेकर के साथ मिलकर, हम सबने खुद को एक नए रूप में देखा—जैसे इस्पात में बदलते हुए।

मैंने बैंक कर्मचारियों के लिए आत्म-चेतना,  मानवीय संबंध, और भावनात्मक बुद्धिमत्ता पर सत्र लिए—ताकि वे ग्राहकों की सेवा केवल नियमों के आधार पर नहीं, बल्कि संवेदना में डूबकर करें। लेकिन इन सत्रों में दूसरों को सिखाते-सिखाते मैंने अपने आप को गहराई से समझा और जाना। मेरे भीतर की नदी अब किसी हिमगंगा की तरह शीतल नहीं, बल्कि जीवन के ताप में तपती हुई बह रही थी।

यह परिवर्तन मुझे उस पुल की ओर ले गया जिसने मुझे पॉज़िटिव साइकोलॉजी की ओर अग्रसर किया—एक ऐसा विज्ञान जो जीवन को सुख, संतोष और सार्थकता की दृष्टि से देखता है। इससे मेरा जीवन-दर्शन ही बदल गया।

सेवानिवृत्ति के पास आते-आते, जब बहुत से लोग जीवन को धीमा पड़ता मानते हैं, मेरी धारा ने गति पकड़ी। मैंने और मेरी पत्नी ने लाफ्टर योगा (हास्ययोग) में मास्टर ट्रेनर बनने की योग्यता प्राप्त की, डॉ. मदन और माधुरी कटारिया के सान्निध्य में, जो इस विधा के प्रवर्तक हैं। हमने जाना कि हास्य और योग केवल एक व्यायाम नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव है। यह एक संगम था—गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का संगम। हम संपूर्णता की ओर अभिमुख हुए।

हमने अपनी दिनचर्या में योग और ध्यान को भी जोड़ा, और अब हमारी धारा केवल बह नहीं रही थी—वह सागर की ओर बढ़ रही थी, अपने साथ अनुभवों की समृद्धि और दूसरों के जीवन को छूने की शक्ति लेकर, उन्हें खुशी और खुशहाली का मार्ग दिखाते हुए।

अब जब पीछे देखता हूं, तो साफ़ दिखाई देता है—कोई भी उपलब्धि अलग-थलग नहीं होती। हर एक उपलब्धि, एक लहर है, जो अगली लहर को जन्म देती है, और धीरे-धीरे जीवन को एक पूर्ण अर्थ देती है। रांझी का एक जिज्ञासु बालक, जो विज्ञान का विद्यार्थी बना, फिर प्रशिक्षक और अंततः एक मार्गदर्शक—मेरी जीवन-गंगा अनेक भूमिकाओं और भूमियों से होकर बहती रही।

मुझे पक्का विश्वास है कि मैंने अपनी धारा से लोगों को कुछ आध्यात्मिक पोषण दिया है, और उस “ब्लास्ट फर्नेस” की आंच से स्वयं कुछ शुद्धता भी प्राप्त की है।

जीवन अच्छा है। जीवन सार्थक है। और यदि सजगता से जिया जाए, तो उसकी छोटी-छोटी उपलब्धियाँ भी एक विशालता का रूप ले लेती हैं।

♥♥♥♥

© जगत सिंह बिष्ट

Laughter Yoga Master Trainer

LifeSkills

A Pathway to Authentic Happiness, Well-Being & A Fulfilling Life! We teach skills to lead a healthy, happy and meaningful life.

The Science of Happiness (Positive Psychology), Meditation, Yoga, Spirituality and Laughter Yoga. We conduct talks, seminars, workshops, retreats and training.

संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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