सुरेश पटवा
(विगत सफरनामा -नर्मदा यात्रा प्रथम चरण के अंतर्गत हमने श्री सुरेश पटवा जी की कलम से हमने ई-अभिव्यक्ति के पाठकों से साझा किया था। इस यात्रा की अगली कड़ी में हम श्री सुरेश पटवा जी और उनके साथियों द्वारा भेजे गए ब्लॉग पोस्ट आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। इस श्रंखला में आपने पढ़ा श्री पटवा जी की ही शैली में पवित्र नदी नर्मदा जी से जुड़ी हुई अनेक प्राकृतिक, ऐतिहासिक और पौराणिक रोचक जानकारियाँ जिनसे आप संभवतः अनभिज्ञ रहे होंगे।
इस बार हम एक नया प्रयोग करेंगे। श्री सुरेश पटवा जी और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। निश्चित ही आपको नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। आज प्रस्तुत है नर्मदा यात्रा द्वितीय चरण के शुभारम्भ पर श्री सुरेश पटवा जी का आह्वान एक टीम लीडर के अंदाज में । साथ ही आज के ही अंक में पढ़िए श्री अरुण डनायक जी का भी आह्वान उनके अपने ही अंदाज में । )
☆ सफरनामा – नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण – श्री सुरेश पटवा जी की कलम से ☆
(झाँसी घाट से बरमान घाट (86 किलोमीटर))
नर्मदा अमरकण्टक से निकलकर डिंडोरी-मंडला से आगे बढ़कर पहाड़ों को छोड़कर दो पर्वत शृंखलाओं दक्षिण में सतपुड़ा और उत्तर में कैमोर से आते विंध्य के पहाड़ों के समानांतर दस से पंद्रह किलोमीटर की दूरी बनाकर अरब सागर की तरफ़ कहीं उछलती-कूदती, कहीं गांभीर्यता लिए हुए, कहीं पसर के और कहीं-कहीं सिकुड़ कर बहती है। उसके अलौकिक सौंदर्य और उसके किनारे स्निग्ध जीवन के स्पंदन की अनुभूति के लिए पैदल यात्रा पर निकलना भाग्यशाली को नसीब होता है।
यह यात्रा वानप्रस्थ के द्वारा सभ्रांत मोह से मुक्ति का अभ्यास भी है। जिस नश्वर संसार को एक दिन अचानक छोड़ना है । क्यों न उस मोह को धीरे-धीरे प्रकृति के बीच छोड़ना सीख लें और नर्मदा के तटों पर बिखरे अद्भुत जीवन सौंदर्य का अवलोकन भी करें।
एक जींस या पैंट के साथ फ़ुल बाहों की शर्ट पहन कर चलें। एक पेंट और तीन-चार शर्ट, एक जोड़ी पजामा कुर्ता, एक शाल, एक चादर टोवेल और अंडरवेयर, साबुन तेल के अलावा कोई अन्य सामान न रखें। बैग पीछे टाँगने वाला हल्का हो।
वैसे तो आश्रम और धर्मशालाओं में भोजन की व्यवस्था हो जाती है फिर भी रास्ते में ज़रूरत के लिए समुचित मात्रा में खजूर, भूनी मूँगफली, भुना चना और ड्राई फ़्रूट रखें। पानी की बोतल और एक स्टील लोटा के साथ एक छोटा चाक़ू भी रखें। कहीं कुछ न मिले तो परिक्रमा वासियों का मूलमंत्र “करतल भिक्षु-तरुतल वास” भी आज़माना जीवन का एक विलक्षण अनुभव होगा।
06.11.19 – झाँसी घाट-बेलखेडी-करैली (6 km)
07.11.19 – करैली-मूंगरघाट-ब्रह्म कुण्ड (8 km)
08.11.19 – ब्रह्म कुण्ड-साँकल घाट (7 km)
09.11.19 – साँकल घाट-पिपरिया (9 km)
10.11.19 – पिपरिया-चींकी-पीपहा (11 km)
11.11.19 – पीपहा-सप्तधारा-बरमान (11 km)
12.11.19 – आराम
14.11.19 – बरमान-ढाना-भटेरा (8 km)
15.11.19 – भटेरा-शोकलपुर (10 km)
16.11.19 – शोकलपुर-खैराघाट (9 km)
17.11.19 – खैराघाट-साँडिया (7 km)
कुल यात्रा (86 km)
© श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।)