हिंदी साहित्य – सफरनामा ☆ नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण  – श्री अरुण कुमार डनायक जी की कलम से ☆ – अरुण कुमार डनायक

श्री अरुण कुमार डनायक

 

(इस बार हम एक नया प्रयोग  करेंगे।  श्री सुरेश पटवा जी  और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। आज प्रस्तुत है नर्मदा यात्रा  द्वितीय चरण के शुभारम्भ   पर  प्रस्तुत है  श्री अरुण डनायक  जी का नर्मदा यात्रा के आह्वान का आनंद लें उनके अपने ही अंदाज में । ) 

 

☆ सफरनामा – नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण  – श्री अरुण डनायक  जी की कलम से ☆ 

(झाँसी घाट से बरमान घाट (86 किलोमीटर))

☆ सफरनामा – नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण  – श्री अरुण कुमार डनायक जी  की कलम से ☆

प्रिय जगमोहन लाल,

जोग लिखी ग्रीन हाइट्स भोपाल से अरुण कुमार ने, और पहले कही राम राम, सो ध्यान से बांचना, थोड़ी लिखी बहुत समझना और घरवालों तथा दोस्तों को भी पढने देना। सुना है नर्मदा की परकम्मा में फिर से जा रहे हो, सो ऐसा करना कि 06.11.2019 दिन बुधवार को सुबह सबेरे सोमनाथ एक्सप्रेस में बैरागढ़ से बोगी नंबर चार  बर्थ नंबर सात पर बैठ जाना। आगे हबीबगंज में तीन  और साथी मिलेंगे तो उन्हें भी अपने बगल में प्रेम से बिठाना और वे आपको एक गत्ता के डिब्बा में 10 पूरी और आलू की सब्जी देंगे सो इसका कलेवा और ब्यारी कर लेना। वे लोग आपको एक बांस का डंडा भी देंगे सो उसे भी रख लेना। आगे दुपहरी में श्रीधाम स्टेशन में उतर कर भैया टेम्पो कर झांसीघाट पहुँच जाना और नर्मदा मैया की  अगरबती पूजाकर, नारियल फोड़ यात्रा शुरू कर देना।

 भैया, नरसिंहपुर जिले में नर्मदाजी की इस यात्रा में आपको  तीन सहायक नदियाँ मिलेंगी, सनेर से तो आप झांसीघाट से पहले ही मिल चुके हो, आगे चलोगे तो शेर नदी मिलेगी यहाँ टोन घाट पर छोटा सा जलप्रपात मिलेगा , इसे देखकर आगे बढना शोकलपुर के पास शक्कर नदी का संगम  नर्मदा से होगा। यहाँ  भगवान शिव ने तपस्या की थी और इसका पुराना नाम शुक्लेश्वर घाट है, पूर्वी तट पर देखोगे तो नीलकंठेश्वर महादेव के दर्शन होंगे। यह स्थान प्रसिद्ध है पूर्णिमा का मेला भरता है और संस्कृत पाठशाला में रुकने  ठहरने की व्यवस्था है। जब नर्मदा में दूधी नदी मिलेगी तो समझना की नरसिंहपुर जिले की सीमा खतम और होशंगाबाद जिला शुरू।

अगरवालजी, पूरी यात्रा में आपको नर्मदा तट पर कोई सत्रह बड़े सुन्दर घाट मिलेंगे। मुआर तट पर भैसासुर का वध हुआ था तो चिनकी घाट पर नर्मदा संगमरमर की चट्टानों के बीच बहती है इसे लघु भेडाघाट भी कहते हैं, यहाँ पांच सौ साल पुराने शिव मंदिर के दर्शन करना न भूलना। आगे चलोगे तो गरारु घाट मिलेगा जहाँ गरुणदेव ने तपस्या की थी, राम जानकी मंदिर के दर्शन कर आगे बढना, करहिया घाट पर बरगद का पेढ़ देखकर घाट पिपरिया की ओर चले जाना, वहाँ शंकरजी के मंदिर की परिक्रमा किये बगैर आगे न जाना। फिर चट्टानों के बीच बहती, शोर मचाती नर्मदा के दर्शन तुम घुघरी घाट और बुध घाट पर करना और  सांकल घाट पहुंचना। मित्र, सांकल घाट की महिमा बहुत है, कहते हैं की आदि शंकराचार्य ने यहीँ तपस्या की थी। अगर मकर संक्रान्ति पर आते यहाँ तो गँवई गाँव के मेले का सुख पाते। सांकल घाट के आगे ब्रह्मकुंड है, देवासुर संग्राम का साक्षी। यहीँ शेर नदी और सतधारा मिलेगी जिसे पार करते ही आप बरमान पहुँच जाओगे। ब्रह्मा के यज्ञ स्थल, बरमान की शान निराली है।  यहाँ प्रेम से मीठे भुट्टे खाना और गन्ना चूसना। यहीँ पर आपकी भेंट हमारे फुफेरे भाई अविनाश दवे से होगी। भईया, अविनाश दवे से  हमारी राम राम कहना और बताना कि कभी उनके पुरखा गंगादत्त महेश्वर दवे तथा ननिहाल पक्ष के सोमदत्त शिवदत्त डनायक गुजरात के खेड़ा और उमरेठ से कोई तीन सौ साल पहले नर्मदा के तीरे तीरे चलकर बरमान से सागर होते हुए पन्ना बसने गये थे। मित्र न जाने वे किस घाट पर बैठे होंगेकहां  स्नान ध्यान और पूजन किया होगा। तुम्हें अगर कोई पंडा मिले तो उसकी पुरानी बहियों को जरुर खंगालना और हमारे  इन पुरखों का नाम जरूर खोजना। दोस्त, अगर संभव हो तो बरमान घाट की किसी कुटिया में हमारे इन पुरखों की स्मृति में दो चार पौधे लगाने अविनाश दवे को प्रेरित करना।  बरमान घाट पर बारहवीं सदी की वाराह मूर्ति, रानी दुर्गावती का बनवाया हुआ ताज महल की आकृति जैसा मंदिर, सत्रहवीं सदी का राम जानकी मंदिर, हाथी दरवाजा, खजुराहो जैसा सोमेश्वर मंदिर है, यह सब देखना न भूलना। मित्र, बरमान में एकाध दिन जरूर रुकना फिर आगे चलना तो बिल्थारी घाट पड़ेगा जहाँ बाली की राजधानी थी और महाभारत काल में पांडव यहीँ रुके थे। आगे बचई गाँव मिलेगा कहते हैं यह राजा विराट की नगरी थी इधर एक मानवाकार शिला दिखेगी जिसे लोग कीचक शिला भी कहते हैं।ककराघाट भी कम भाग्यशाली नहीं है, शिवानन्द की तपस्थली पर आप पारद शिवलिंग के दर्शन करना, फिर ककरा महराज की तपस्या के किस्से सुनना। कोई सज्जन आपको यह भी बताएगा कि यहीँ तिमार ऋषि ने जलसमाधि ली थी तो आगे रिछावर घाट पर जामवंत ने तपस्या की थी। यहाँ से कीटखेडा होते हुए रामघाट पहुंचना लोग बताते हैं कि यहीँ भगवान राम ने तप किया था। इधर शिव मंदिर और हनुमान मंदिर के दर्शन करना मत भूलना। भैया राम घाट के आगे ही शोकलपुर है जिसका बखान हमने ऊपर कर ही दिया है।

मित्र , बरमान घाट में कोई गवैया मिल जाए तो उससे बबुलिया गीत जरुर सुनना। नर्मदा मैया की श्रद्धा में  गाये जाने वाले इस गीत की महिमा निराली है और 1300 किमी की नर्मदा परिक्रमा में यह भजन गीत आपको यहीँ सुनने-सुनाने मिलेगा।

किसी ने हमें बताया कि गाडरवाड़ा के पास मोहपानी है। इधर एक गुफा , अंग्रेजों के जमाने का पुल और रानी दहार देखने लायक है। गाडरवाड़ा स्टेशन से कोई चौदह किमी दूर चौरागढ़ का किला है। इस किले से दुर्गावती के पुत्र वीर नारायण की वीरता के किस्से जुढ़े हैं और यहीँ किले के निकट नौनियाँ गाँव  में छह विशालकाय मूर्तियाँ देखने मिलेंगी। गाडरवाड़ा स्टेशन से कोई पांच किमी दूर डमरू घाटी है जहाँ भगवान् शिव की विशाल मूर्ती है।

दोस्त जब झाँसीघाट से चलोगे तो पहला विश्राम झालोन घाट पर करना और रात्रि बेलखेडी में रुकना। अगली रात मुआर के मंदिर में ठौर मिलेगी तो आगे जमुनियां गाँव के बाद सांकल पडेगा उधर रात में रुक जाना। आगे आप बढोगे तो पिपरिया और चिनकी में भी रात रुकने मिलेगी फिर बरमान में तो आनंद बरसने वाला है। बरमान से जब आप आगे चलोगे तो ज़रा संभलकर चलना। इधर पगडंडी सकरी और फिसलन भरी है ज़रा सी लापरवाही से नदी में गिरने का डर रहता है। आगे बारिया गावं पडेगा वहाँ रात बिता कर दूसरे दिन भदेरा के लिए चल देना। बस एक रात रुके तो शोकलपुर आ जाएगा। शोकलपुर में संस्कृत पाठशाला है जहा रात प्रेम से बिताना। शोकलपुर से जब आप चलोगे तो सांडिया पडेगा यहीँ अंजनी  नदी नर्मदा से मिलती दिखेगी।

मित्र, भोजन पानी की तो तुम चिंता न करना। नरसिंहपुर जिला तो कृषि और दुग्ध  प्रधान है और फिर कार्तिक का महीना  शुरू हो गया है सो दही से परहेज करना, बुंदेलखंड में लोकोक्ति है कि “क्वार करेला कार्तिक दही मरहो नई तो परहो सई”। अब तो खेतों में भटा, टमाटर, मिर्ची की फसल आ गई होगी और गुड़ घी तो खूब मिलेगा सो बढ़िया गक्कड, भरता घी गुड़ के साथ खाना और सीताफल, बेर, मुकईया और आँवला के साथ गन्ने को चूसना। नर्मदा मैया न तो तुम्हे भूखा रहने देंगी और न कष्ट में रहने देंगी। मित्र जब कभी  थक जाओ तो नर्मदा  तट के किनारे की रेत को  मैया का  आँचल समझ प्रेम सो जाना।    

दोस्त थोड़े में लिखा है इसे पढ़कर  सुरेश पहलवान और मुंशीलाल जी को जरूर सुनाना। अगर प्रयास जोशी कहीं मिल जायँ तो उन्हें भी यह चिट्ठी पढने को दे देना शायद वह भी साथ चलने को तैयार हो जाएँ।

अंत में  भईया नर्मदे हर ! हर हर नर्मदे ! 

 

©  श्री अरुण कुमार डनायक

42, रायल पाम, ग्रीन हाइट्स, त्रिलंगा, भोपाल- 39

(श्री अरुण कुमार डनायक, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं  एवं  गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित हैं। )