सुरेश पटवा 

 

 

 

 

 

(विगत सफरनामा -नर्मदा यात्रा प्रथम चरण  के अंतर्गत हमने  श्री सुरेश पटवा जी की कलम से हमने  ई-अभिव्यक्ति के पाठकों से साझा किया था। इस यात्रा की अगली कड़ी में हम श्री सुरेश पटवा  जी और उनके साथियों द्वारा भेजे  गए  ब्लॉग पोस्ट आपसे साझा करने का प्रयास करेंगे। इस श्रंखला में  आपने पढ़ा श्री पटवा जी की ही शैली में पवित्र नदी नर्मदा जी से जुड़ी हुई अनेक प्राकृतिक, ऐतिहासिक और पौराणिक रोचक जानकारियाँ जिनसे आप संभवतः अनभिज्ञ  रहे होंगे।

इस बार हम एक नया प्रयोग  कर रहे हैं।  श्री सुरेश पटवा जी और उनके साथियों के द्वारा भेजे गए ब्लॉगपोस्ट आपसे साझा  करने का प्रयास करेंगे।  निश्चित ही आपको  नर्मदा यात्री मित्रों की कलम से अलग अलग दृष्टिकोण से की गई यात्रा  अनुभव को आत्मसात करने का अवसर मिलेगा। आज प्रस्तुत है नर्मदा यात्रा  द्वितीय चरण के शुभारम्भ   पर श्री सुरेश पटवा जी का आह्वान एक टीम लीडर के अंदाज में । )  

☆ सफरनामा – नर्मदा परिक्रमा – दूसरा चरण #3  – श्री सुरेश पटवा जी की कलम से ☆ 

☆ 07.11.2019 बेलखेडी से गंगई ☆
(10.5 किलोमीटर 17846 क़दम) 

बेलखेडी के मंदिर के खुले प्रांगण में रात गुज़ारी, वहाँ चार-पाँच सेवक चाय भोजन की व्यवस्था करते रहे। दाल चावल रोटी का सेवन किया। उसके बाद आठ-दस लोग प्रांगण में आकर बैठे, उनसे सनातन धर्म में दीपक की महत्ता पर चर्चा हुई कि हम रोज़ दीपक क्यों जलाते हैं। हमारी देह पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश के पंचभूत से अस्तित्व में आती है और आत्मा की ज्योति जीव रूप में प्रतिष्ठित होती है। दीपक पृथ्वी की मिट्टी से बनता है, उसमें तेल रूप में जल, और वायु  व आकाश के खुलेपन में अग्नि प्रज्वलित करके दीपक जलाया जाता है। इस प्रकार दीपक जीवंत देह का प्रतीक है। पंचभूत और आत्मा के सम्मान स्वरुप दीपक जलाया जाता है।

उसके बाद गांधी जी के जीवन पर बातचीत हुई लोगों को स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी महत्वपूर्ण घटनाओं और गांधी जी की भूमिका पर संवाद हुआ।

(नर्मदा यात्रा द्वितीय चरण का शुभारम्भ – प्रथम दिवस)

सुबह एक-एक गिलास दूध पीकर आठ बजे गाँव से नर्मदा की गोदी में उतर कर चल पड़े। रास्ता बड़ा कठिन था, किसानों ने खेतों को गोड़ दिया है या फ़सल बोकर स्प्रिंकलर चलने से रास्ते पर कीचड़ हो जाने से जूतों में दो-दो किलो मिट्टी चिपकने से चलना दूभर था। बड़ी मुश्किल से रुक-रुक कर चलते रहे।  क़रीबन तीन बजे धुरन्धर बाबा के आश्रम में पहुँचे। धुरन्धर बाबा बिहार से आकर नर्मदा के किनारे एक पहाड़ी पर आश्रम बनाकर रहने लगे हैं। गाँजे की पत्ती और चाय उनका भोजन है।

एक बार सरकारी आबकारी विभाग ने धुरन्धर बाबा को गाँजे के पौधे साक्ष्य स्वरुप लेकर नरसिंहपुर कलेक्टर के सामने  पेश किया। धुरन्धर बाबा ने दलील रखी कि गाँजे की पत्तियाँ मेरा भोजन है, नहीं खाऊँगा तो मर जाऊँगा और हत्या का आरोप आपके माथे पर आएगा। कलेक्टर साहब ने आबकारी अधिकारी को धुरन्धर बाबा की पेशकारी पर डाँट पिलाई। उस दिन के बाद धुरन्धर बाबा निर्विघ्न गाँजे की खेती करके पत्तियों को भोजन और चाय सेवन से ज़िंदा हैं। उनके बाल दस फ़ुट लम्बे हैं, बाबा का कहना है की  जिन लड़कियों या औरतों को केश की लम्बाई बढ़ानी है वे गाँजे की पत्तियों का नियमित सेवन करें। बाबा मज़बूत पाए के काऊच पर आसन जमाए रहते हैं, गाँजा रगड़ते और बाँटते हैं उनके पास आठ-दस कुत्ते पले हैं जिनको भी गाँजे के धुएँ और पत्तियों के सेवन की आदत पड़ गई है।

(नर्मदा यात्रा द्वितीय चरण का शुभारम्भ – दूसरा दिवस)

पहले हमारा सामना उनके एक धूर्त सेवक से हुआ, जो खींसे निपोरकर  किसी भी बात का मुंडी हिलाकर जबाव देता था। पहले बोला आश्रम में दाल-चावल भर हैं। रात में केवल दाल-चावल खाने से रात में बार-बार पेशाब  से नींद टूटती है और अच्छी नींद  नहीं होने से शरीर टूटने लगता है जबकि हमें रोज़ दस किलोमीटर चलना होता है। हम गाँव से आलू, भटे और टमाटर ख़रीद लाए तो वह बोला आपही बना लो, जब धुरन्धर बाबा को पता चला तो उन्होंने स्वयं सब्ज़ी और हमारी आठ चपाती के बराबर एक 10-12 mm मोटाई का टिक्क बनाकर परसा जिसे मुश्किल से खपा पाए।

© श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा, भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त अधिकारी और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं।)

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