श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे
(वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्री अशोक श्रीपाद भांबुरे जी का अपना एक काव्य संसार है । आप मराठी एवं हिन्दी दोनों भाषाओं की विभिन्न साहित्यिक विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आज साप्ताहिक स्तम्भ –अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती शृंखला की अगली कड़ी में प्रस्तुत है एक भावप्रवण हिंदी ग़ज़ल “कुर्बान जिस्म जाँ ये, मेरी यहाँ वतन पर”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अशोक भांबुरे जी यांची कविता अभिव्यक्ती # 24 ☆
☆ कुर्बान जिस्म जाँ ये, मेरी यहाँ वतन पर ☆
कुर्बान जिस्म जाँ ये मेरी यहाँ वतन पर
मैं नाम खुद लिखूंगा मेरा वहाँ कफ़न पर
मैं हाथ तोड़ दूंगा गद्दार के कसम से
कोई न हाथ डाले अब देश की बहन पर
झंडा सफे़द लेकर शव को उठाने आओ
गिनलो निशान सारे ना’पाक’ इस बदन पर
बारूद कम हुआ है अल्लाह की फ़जल से
अब फूल ही खिलेंगे कश्मीर के चमन पर
दुनिया समझ गई है दमख़म यहाँ हमारा
अब नाम हिंद का मैं लिख दूं वहाँ गगन पर
शांति की राह पर हम चलते रहे निरंतर
विश्वास है हमारा गांधी के उस भजन पर
भूखा किसान क्यो है इसका जवाब चुप्पी
कुछ साथ दे रहे हैं नेता बडे गबन पर
© अशोक श्रीपाद भांबुरे
धनकवडी, पुणे ४११ ०४३.
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