श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश। आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “ज़िंदा है”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश – ग़ज़ल # 3 – “ज़िंदा है” ☆ श्री सुरेश पटवा ☆
फ़रमाते हैं, वह नाफ़ानी दुनिया में अभी ज़िंदा है,
पूरी दुनिया जिस तरह काग़ज़ी पैकर में ज़िंदा है।
इंसान दिली ख्वाहिशों से बंधा जिद्दी परिंदा है,
बेमुद्दत अरमानों से घायल उन्ही में ज़िंदा है।
खोखले खोल में उड़ता फिरता है हरेक शख़्स,
अपनी हसरतों और मंसूबों की क़ैद में ज़िंदा है।
मालिक ने जीस्त की हर आरज़ू पूरी कर दीं,
उससे मिलने की बस एक आस में ज़िंदा है।
ज़िंदगी में दोस्तों ने परेशान तो बहुत किया,
पर उन्ही की मुहब्बत ओ दुआओं में ज़िंदा है।
कुछ बोलो नाकामियों पर उसकी हँस ही लो,
“आतिश” का अहसास अभी दिलों में ज़िंदा है।
© श्री सुरेश पटवा
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈