श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश। आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “हमदम”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ आतिश का तरकश – ग़ज़ल # 4 – “हमदम” ☆ श्री सुरेश पटवा ☆
ज़िंदगी में आए थे तुम एक महकता हार बनकर,
ताज़िंदगी चुभते रहे रक़ीब से मिल ख़ार बनकर।
अम्बर में खिलना था शरद ऋतु का चाँद बनकर,
झुलसाते रहे आशियाना नौतपा की बहार बनकर।
चलना था हमें साथ हमकदम हमसफ़र बनकर,
अनजान राहों पर क्यूँ चले तुम सदाचार बनकर।
मुलायम लिहाफ़ में सुलाना तय था माँ बनकर,
घायल किया तुमने ज़हरीला हथियार बनकर।
तमन्ना थी भर दोगे झोली कामना देव बनकर,
ज़िंदगी के हर मोड़ पर मिले पराया यार बनकर।
सातवाँ आसमान छूना तय था हम परवाज़ बनकर
बीच धार डुबोई तुमने नैया हम पतवार बनकर।
‘आतिश’ मिला मदहोश चाँदनी में प्यार बनकर,
बेवफ़ा हुस्न मिला सरे बाज़ार व्यापार बनकर।
© श्री सुरेश पटवा
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈