श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “पुराना-नया”।)
ग़ज़ल # 10 – “पुराना-नया” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
सर्द धुंध छँटे ज़रा दया करें,
नये बरस में कुछ नया करें।
बीता पुराना नया सामने खड़ा,
हम इन्हें रदीफ़ क़ाफ़िया करें।
सर्द हवाएँ चलती रहीं सारी रात,
पहली तारीख़ आदाब ज़ाया करें।
गुनगुनी धूप चढ़ने का है इंतज़ार,
बदन सेंकने में वक्त ज़ाया करें।
मुसीबतों की धूप सिर चढ़ आई,
मेरे महबूब ज़ुल्फ़ों का साया करें।
शाम फिर लौट आई तीखी ठंड,
उठाएँ ज़ाम वक़्त न ज़ाया करें।
जो बीत गया समझो रीत गया,
नए साल में कुछ तो नया करें।
ज़िंदगी का तक़ाज़ा है “आतिश”
हम हरदम पुराने का नया करें।
© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈