श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “बूढ़ा शायर”।)
ग़ज़ल # 11 – “बूढ़ा शायर” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
ज़िक्र छेड़ा ही है तो फिर माहौल बनाए रखिये,
सहर तक अपने अरमानों की लौ जलाए रखिये।
उजड़ने के बाद बाग़ में आता नहीं भूला भटका,
झूठी ही सही उम्मीद की इज्जत बचाए रखिये।
तरह-तरह की मुसीबतें रोज़ाना सिर खपायेंगी,
ख़ुद को ही नहीं सपनों को भी सजाए रखिये।
अलबत्ता ये कठिन दौर भी यूँ ही गुज़र जायेगा,
हिम्मत ने साथ दिया उसे यूँ ही बनाए रखिये।
आया है सो जाएगा दुनिया से राजा रंक फ़क़ीर,
एक नज़्म मालिक के वास्ते भी छपाए रखिये।
सत्तर वसंत का रस नुमायाँ इस शख़्सियत में,
दिल-दौलत की महफ़िल यूँ ही सजाए रखिये।
तुम्हें बूढ़ा शेर भी कभी घास खाते नहीं दिखता,
शिकार में मैदानी अन्दाज़ यूँ ही बनाए रखिये।
चिंता चिता में ज़ाया न हो कोई पल “आतिश”,
कूच के वक़्त भी शायरी की लौ जलाए रखिये।
© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈