श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं । आज से प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “तुम क्या जान लोगे?”।)
ग़ज़ल # 14 – “तुम क्या जान लोगे?” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
मिरे चेहरे से तुम क्या जान लोगे,
दिल तुमको दिया क्या जान लोगे।
हुआ नीलाम सियासती बाज़ार में,
उस मज़लूम से क्या ईमान लोगे।
कल रात ठंड में ठिठुर मरा कोई,
फटी पोटली से क्या सम्मान लोगे।
बिक चुका जो नेता जिंस की तरह,
उस बेईमान से क्या उन्मान लोगे।
दुकाने खुली नफ़रतों की हर सिम्त,
कहाँ से मुहब्बत का सामान लोगे।
इश्क़ तो तुमको हुआ मसरूफियत से
तयशुदा ख़रीद तुम पूरा ज़हान लोगे।
डरते क्यों हो ज़माने की निगाहों से,
मुहब्बत पा जाओगे अग़र ठान लोगे।
हमसे कुछ दिन थोड़ा और रूठे रहो,
मिलने की मजबूरी आतिश जान लोगे।
© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈