श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं । प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “पैमाना…”।)
ग़ज़ल # 30 – “पैमाना …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
हर दुनियावी शख़्स का होता एक तय पैमाना है,
तौल कर देखिए हम सबका एक तय पैमाना है।
ज़िंदगी का ज़हर लोग गले में धीरे-धीरे उतारते,
बाहरी खोल जो हमें दिखता एक तय पैमाना है।
चाहत है खिला सकूँ मौज़ू चेहरों को महफ़िल में,
आँसुओं में झिलमिलाती रोशनी तय पैमाना है।
तिरछी होती जा रहीं महफ़िल में कुछ निगाहें,
मजलिस में मौजू दिमाग़ों का तय पैमाना है।
नज़रों में पानी की कैफ़ियत अलग होती है हुज़ूर,
कद्रदाँ पेशानी पर उभरती रेखाएँ तय पैमाना है।
फ़िरक़ों में बाँट कर रख दी खूबसूरत ज़िंदगी,
ईसा ओ मुहम्मद का भी एक तय पैमाना है।
हिंद की खुली फ़िज़ाओं में ज़िंदगी गुज़ार देखो,
जिसके गुलशन में ख़ुश्बू का नहीं तय पैमाना है।
मुनासिब नहीं हर शेर पर हौसला अफजाई हो,
चुप हाज़िरान भी उनकी तारीफ़ का पैमाना है।
मासूम माथे पर लिख दिया इंजीनियर डॉक्टर,
हँसते-खेलते बचपन का मार्कशीट तय पैमाना है।
तुम रिश्तों में भावना की असलियत न पूछो,
बैंक पास बुक में असल रक़म तय पैमाना है।
माना बहुत बेरंग चेहरा उस रोशन दिमाग़ का,
आख़िर वो किसी न किसी ढंग का पैमाना है।
तुम्हें क्या पता शायर को क्या मुश्किल आती है,
‘आतिश’ दिल को पिघला कर ढालता पैमाना है।
© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈