श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी  ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकशआज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “नश्तर सी चुभतीं बुज़ुर्ग नसीहतें…”)

? ग़ज़ल # 33 – “नश्तर सी चुभतीं बुज़ुर्ग नसीहतें…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’ ?

सर-ए-आईना सच्ची बात रखना,

मुवक्किल हो सही हालात रखना।

 

माना बहुत रोशन दिमाग़ हो तुम,

जिरह वास्ते वकील साथ रखना। 

 

भले ही आँसुओं पर हो पाबंदियाँ,

दिल हल्का करने बरसात रखना।

 

बड़ा ख़ुराफ़ाती बच्चा होता दिल,

उसकी शरारतों की ख़ैरात रखना।

 

खुलकर बाँटो ख़ुशियाँ जमाने को,

ख़ुशनुमा लम्हों की सौगात रखना।

 

नश्तर सी चुभतीं बुज़ुर्ग नसीहतें,

धीरे से तुम अपनी  बात रखना।

 

दिल्लगी ज़िंदगी आसान करती है,

मुस्कान होंठों पर बेबात रखना।

 

भले ही चाँद छुपा हो बादल में,

“आतिश” उजले जज़्बात रखना।

© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’

भोपाल, मध्य प्रदेश

≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈

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