श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “नीति नहीं होती है यहाँ …”।)
ग़ज़ल # 35 – “नीति नहीं होती है यहाँ…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
साँप तुम सभ्य नही हुए नगर भी कहाँ बनाया,
तुम ड़सना कहाँ सीखे तुमने ज़हर कहाँ बनाया।
सभ्य हम हुए और स्मार्ट नगर भी यहाँ बसाया,
लालच ईर्ष्या द्वेष विष हमने है यहाँ बनाया।
मैं मेरा अहंकार घमंड़ी बीन बजाती यहाँ काया।
वो मिट गया जिसने मिलन बसेरा यहाँ बनाया।
जब बनता नहीं काम अच्छी बातों से हमारा,
हमने एक नया तरीक़ा राजनीति यहाँ बनाया।
नीति नहीं होती है यहाँ कभी राजनीति में कोई,
खुद की छवि चमका दूसरे को पशु यहाँ बनाया।
काम मद क्रोध लोभ मोह को सहज अपनाया,
प्रेम दया स्नेह करुणा से अंतर यहाँ बनाया।
जब चले निभाने लोकतंत्री धर्म सत्ता प्राप्ति के,
जाति बाहूबल प्रशासन पैसा यहाँ बनाया।
जब बनता नहीं किसी कुटिलता से काम हमारा,
जीतने चुनाव मंदिर मस्जिद मुद्दा यहाँ बनाया।
मारते जिस रावण को और जलाते हर दशहरा,
रावण नीति लक्ष्मण को सिखा के जहाँ बनाया।
दस इनके बीस उनके धूर्तता से तोड़ तुड़ाकर,
सत्ता गलियारे में हमने मुख्यमंत्री यहाँ बनाया।
© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈