श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “स्वर्ग भी मंज़ूर नरक भी क़बूल …”।)
ग़ज़ल # 36 – “स्वर्ग भी मंज़ूर नरक भी क़बूल…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
सच की बाँह थामे चलता रहा झूठ को थोड़ा निहार लिया।
नौतपा धूप में जलता रहा यारों की अमराई बुहार लिया।
ईमान की चादर भी बिछाई बेईमान गमछा उधार लिया।
वैसे तो काफ़ी संयम में रहा थोड़ा मज़ा दयार-ए-यार लिया।
बहादुरी भी यारो खूब दिखाई थोड़ा डरते हुए वार लिया।
नफ़रत की भी हुई कमाई साथ में थोड़ा सा प्यार लिया।
धर्म की दुकाने भी खूब घूमा पुराना माल तैयार लिया,
आँखें खोलकर देखीं जब दिल खोल कर दिलदार लिया।
स्वर्ग भी मंज़ूर नरक भी क़बूल हँस कर स्वीकार लिया।
बचपन नहीं छोड़ा ‘आतिश’ ने गुलों के साथ ख़ार लिया।
© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈