श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “जमाने ने रहम नहीं किया …”।)
ग़ज़ल # 38 – “जमाने ने रहम नहीं किया …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
अपने अहसासों को लफ़्ज़ पहना रहा हूँ,
अपने ज़ख्मों को खुद ही सहला रहा हूँ।
क्या ज़िक्र करूँ ख़ुदगर्ज़ रिश्तेदारों का,
उन्हें अब उनका चेहरा दिखा रहा हूँ।
वक़्त ने पाल पोसकर बड़े करम किए,
अब उसी का अक्स बनता जा रहा हूँ।
दोस्तों ने सयानेपन में कसर नहीं छोड़ी,
उन्ही के अन्दाज़ में दोस्ती निभा रहा हूँ।
जमाने ने रहम नहीं किया ‘आतिश’ पर,
वक़्त ए रूखसत तौफ़ीक़ आज़मा रहा हूँ।
© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈