श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “ज़िंदगी इसी तरह से निभती है जनाब …”।)
ग़ज़ल # 50 – “ज़िंदगी इसी तरह से निभती है जनाब …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
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मान करना ज़रूरी बाँह पकड़ने को सब तैयार,
पाक होना ज़रूरी है साथ चलने को सब तैयार।
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हाथ हाथों में हर वक्त रहे मुमकिन नहीं होता,
थाह दिल की लो साथ धड़कने को सब तैयार।
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आसमान के तारे तोड़ लाने की क़समें बेवजह,
प्यार पाने की हो नीयत निभने को सब तैयार।
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नौबत हाथापाई की ना पाए कभी नौकझोंक में,
गरम ठंडा सहना आता हो हंसने को सब तैयार।
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ज़िंदगी इसी तरह से निभती है जनाब आजकल,
राह आसान ‘आतिश’, साथ चलने को सब तैयार।
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© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈