श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “मिटा दे अपनी हस्ती ग़र …”।)
ग़ज़ल # 51 – “मिटा दे अपनी हस्ती ग़र …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
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अदब की महफ़िल में यार तू शायरी कर,
मत यूँ ही अल्फाज़ की तू जादूगरी कर।
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क्यों लागलपेट की बात करता तू उठते बैठते,
कर जुमलों दरकिनार एक बात तो खरी कर।
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क़ीमतों की मार से बेबस को राहत तो मिले,
शहंशाह है बीमार की कुछ तो चारागरी कर।
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अदब-तहजीब को धंधा बनाये कुछ सुख़नवर,
अय कलम ईमान भूलों की मत चाकरी कर।
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फ़िरक़ा परस्ती मिट जाए लोगों के दिलों से,
यार सोच समझ कर कुछ तो सौदागरी कर।
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मिटा दे अपनी हस्ती ग़र कोई मर्तबा चाहे है,
मुल्क को ख़ुशनुमा खुद को ख़ुदी से बरी कर।
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दिल में कुछ ईमान रखकर ज़ाया कर मंदिर,
मुफ़्त में वोटों के लिए मत तू यायावरी कर।
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दिल मे हैं तामीर उसके मंदिर ओ’ मस्जिद,
रियाया को मिले धंधा ऐसी तू बाज़ीगरी कर।
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शौक़ हुकूमत का पाल बख़ूबी तू सियासत कर,
मुल्क में अमन वास्ते ‘आतिश’ कारीगरी कर।
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© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈