श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “तेरी ख़ुश्बू मुझ पर …”।)
ग़ज़ल # 54 – “तेरी ख़ुश्बू मुझ पर …” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
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चश्मे पुरनम मुसक़ाती रही रात भर,
तेरी याद मुझे आती रही रात भर।
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कोई आहट सी भी आती रुकरुक कर,
नागिन जुल्फ लहराती रही रात भर।
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सारी रात चिढ़ाता चाँद भी फलक पर,
शबनम मुझको झुलसाती रही रात भर।
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सुलग गया तन मन आ बैठा हैं अनंग
तेरी ख़ुश्बू मुझ पर छाती रही रात भर,
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आतिश से बिछड़न होता है एक जंजाल,
ख़लिश पुरानी मुझे सताती रही रात भर।
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© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈