श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। श्री सुरेश पटवा जी ‘आतिश’ उपनाम से गज़लें भी लिखते हैं ।प्रस्तुत है आपका साप्ताहिक स्तम्भ आतिश का तरकश।आज प्रस्तुत है आपकी ग़ज़ल “तुम भी अपने गरेबाँ में झाँककर देखो…”।)
ग़ज़ल # 55 – “तुम भी अपने गरेबाँ में झाँककर देखो…” ☆ श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
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हम भी हँसते हैं ग़म छुपाने के लिये,
सब ग़म होते नहीं दिखाने के लिये।
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कलम पहले लड़ती थी सच की लड़ाई,
अब खूब चलने लगी कमाने के लिये।
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उसने दबी ज़ुबान कहा कि वो ख़ुश है,
फिर फ़ोन किया ख़ुशी जताने के लिए।
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अपराध ने पुलिस से कर ली सगाई,
राजनीति का रिश्ता निभाने के लिए।
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चालाक औलाद बूढ़ी माँ को छोड़ आये,
वृद्धाश्रम की व्यवस्था दिखाने के लिए।
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तुम भी अपने गरेबाँ में झाँककर देखो,
आतिश लिखता नाम सजाने के लिए।
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© श्री सुरेश पटवा ‘आतिश’
भोपाल, मध्य प्रदेश
≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈