सौ. सुजाता काळे
(सौ. सुजाता काळे जी मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं। उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी की पर्यावरण और मानवीय संवेदनाओं पर आधारित एक भावप्रवण कविता “होशोहवास”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 23 ☆
☆ होशोहवास ☆
मेरे शहर में हज़ारों लोग हैं जो
दूसरों के गिरहबान में झाँक रहे हैं
अपने गिरहबान में झाँकने का
उन्हें होशोहवास नहीं है।
मेरे शहर में अनगिनत लोग हैं जो
दूसरों की गलतियों पर ताना देते हैं
अपनी गलतियों पर पछताने का
उन्हें होशोहवास नहीं है।
मेरे शहर में हजारों लोग हैं जो
दूसरों के दुखों पर खुश होते हैं
अपने सुख से परे देखने का
उन्हें होशोहवास नहीं है।
मेरे शहर में लाखों लोग हैं जो
दूसरों के हार पर खुश होते हैं
अपनी जीत के आगे देखने का
उन्हें होशोहवास नहीं है।
© सुजाता काळे
पंचगनी, महाराष्ट्र, मोब – 9975577684