श्री संजय भारद्वाज
☆ संस्मरण ☆ हिंदी आंदोलन परिवार (हिंआप यात्रा -3) ☆
(हिंदी आंदोलन परिवार के आंदोलन को अभियान का अर्थ देने की सफल प्रक्रिया के लिए ई- अभिव्यक्ति परिवार की हार्दिक शुभकामनायें )
30 सितम्बर 2020, हिंदी आंदोलन परिवार का 26वाँ स्थापना दिवस। सच कहूँ तो हिंआप केवल शब्द या संस्था भर नहीं है। हमारी संतान है हिंआप।
विवाह के लगभग ढाई वर्ष बाद हिंआप का जन्म हुआ। बच्चे के जीवन में गिरने-पड़ने-संभलने, उठने-चलने-दौड़ने के जो चरण और प्रक्रियाएँ होती हैं, वे सभी हिंआप के जीवन में हुईं। हमारी संतान अब नयनाभिराम युवा हो चुकी।
स्मृतिचक्र घूम रहा है और कलम चल रही है। ईश्वर की अनुकंपा, माता-पिता के आशीष और आत्मीय जनो की शुभकामनाओं के चलते सार्वजनिक जीवन में नगण्य-ही सही पर स्थापना मिली। इसके चलते प्रायः विभिन्न आयोजनों में जाना होता है। स्वागत/ सम्मानस्वरूप मिला पुष्पगुच्छ घर लाकर रख देता हूँ। ऊपर से बेहद सुंदर दिखते पुष्प तीन से चार दिन में पूरी तरह सूख जाते हैं। जड़ों से कटने पर यही स्थिति होती है।
हिंआप ने अपनी स्थापना के समय से ही काटने या तोड़ने के मुकाबले खिलने और जोड़ने की प्रक्रिया को अपनाया। हमने बुके के स्थान पर पौधे देने की परंपरा का अनुसरण किया, विनम्रता से कहूँ तो कुछ अर्थों में सूत्रपात भी किया। पौधे मिट्टी से जुड़े होते हैं। इनमें वृक्ष बनने की संभावना अंतर्निहित होती है।
इसी संभावना को हिंआप में संगठन के स्तर पर लागू करने का प्रयास भी किया। सभी साथियों की प्रतिभा को यथासंभव समझकर मांजने- तराशने के समुचित अवसर देते गये। इसमें वाचन,लेखन, प्रस्तुति से लेकर व्यवस्थापन कुशलता, समूह में काम करने की वृत्ति, नेतृत्व, सहयोग, समयबद्धता जैसे अनेक आयाम समाविष्ट हैं। मिट्टी से जुड़े रहने का लाभ यह हुआ कि कुछ वृक्ष बन चुके, कुछ पौधे हैं, कुछ अंकुर फूट रहे हैं, कुछ बीज बोये जा चुके। अत्यंत नम्रता से कहना चाहता हूँ कि इस प्रक्रिया के चलते आज हिंआप के पास टीम ‘बी’ और टीम ‘सी’ भी तैयार हैं।
संस्था के सामूहिक प्रयासों ने ‘आंदोलन’ शब्द जिस अर्थ में ढल चुका था, उससे बाहर निकाल कर उसे ‘अभियान’ का अर्थ देने में सफलता पाई।
धारा के विरुद्ध काम करते समय प्राय: उपजने वाली निराशा और थकान का हिंआप सौभाग्य से अपवाद रहा। हर बीज से नया वृक्ष खड़ा करने की जिजीविषा इस उपवन को निरंतर विस्तृत करती रही।
हिंआप आशंका में संभावना बोने का मिशन है। नित विस्तृत होती परिधि में बीज से वृक्ष होने की संभावना को व्यक्त करती हिंआप के जन्म के आसपास के समय की अपनी एक रचना स्मरण हो आई।
जलती सूखी जमीन
ठूँठ-से खड़े पेड़
अंतिम संस्कार की
प्रतीक्षा करती पीली घास,
लू के गर्म शरारे
दरकती माटी की दरारें
इन दरारों के बीच पड़ा
वो बीज…,
मैं निराश नहीं हूँ
ये बीज मेरी आशा का केन्द्र है।
ये,
जो अपने भीतर समाये है
असीम संभावनाएँ-
वृक्ष होने की
छाया देने की
बरसात देने की
फल देने की
और हाँ;
फिर एक नया बीज देने की,
मैं निराश नहीं हूँ
ये बीज
मेरी आशा का केन्द्र है।
आशा बनी रही, भाषा टिकी रहे, संस्था चलती रहे उस दिन तक, जिस दिन भारतीय भाषाएँ शासन- प्रशासन, शिक्षा-दीक्षा, न्याय-अनुसंधान, हर क्षेत्र में वांछित जगह पूरी तरह बना लें।
संजय भारद्वाज
संस्थापक- अध्यक्ष
हिंदी आंदोलन परिवार
☆ सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय ☆ संपादक– हम लोग ☆ पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स ☆
मोबाइल– 9890122603
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈