श्रीमति उज्ज्वला केळकर
(सुप्रसिद्ध वरिष्ठ मराठी साहित्यकार श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी मराठी साहित्य की विभिन्न विधाओं की सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपके कई साहित्य का हिन्दी अनुवाद भी हुआ है। इसके अतिरिक्त आपने कुछ हिंदी साहित्य का मराठी अनुवाद भी किया है। आप कई पुरस्कारों/अलंकारणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपकी अब तक 60 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें बाल वाङ्गमय -30 से अधिक, कथा संग्रह – 4, कविता संग्रह-2, संकीर्ण -2 ( मराठी )। इनके अतिरिक्त हिंदी से अनुवादित कथा संग्रह – 16, उपन्यास – 6, लघुकथा संग्रह – 6, तत्वज्ञान पर – 6 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। )
आज प्रस्तुत है सर्वप्रथम सुश्री मीरा जैन जी की मूल हिंदी लघुकथा ‘कर्तव्य ’ एवं तत्पश्चात श्रीमति उज्ज्वला केळकर जी द्वारा मराठी भावानुवाद कर्तव्य ’।
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सुश्री मीरा जैन
(सुप्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार सुश्री मीरा जैन जी का ई- अभिव्यक्ति में हार्दिक स्वागत है । अब तक 9 पुस्तकें प्रकाशित – चार लघुकथा संग्रह , तीन लेख संग्रह एक कविता संग्रह ,एक व्यंग्य संग्रह, १००० से अधिक रचनाएँ देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से व्यंग्य, लघुकथा व अन्य रचनाओं का प्रसारण। वर्ष २०११ में ‘मीरा जैन की सौ लघुकथाएं’ पुस्तक पर विक्रम विश्वविद्यालय (उज्जैन) द्वारा शोध कार्य करवाया जा चुका है। अनेक भाषाओं में रचनाओं का अनुवाद प्रकाशित। कई अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय तथा राज्य स्तरीय पुरस्कारों से पुरस्कृत / अलंकृत । नई दुनिया व टाटा शक्ति द्वारा प्राइड स्टोरी अवार्ड २०१४, वरिष्ठ लघुकथाकार साहित्य सम्मान २०१३ तथा हिंदी सेवा सम्मान २०१५ से सम्मानित। २०१९ में भारत सरकार के विद्वानों की सूची में आपका नाम दर्ज । आपने प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट के पद पर पांच वर्ष तक बाल कल्याण समिति के सदस्य के रूप में अपनी सेवाएं उज्जैन जिले में प्रदान की है। बालिका-महिला सुरक्षा, उनका विकास, कन्या भ्रूण हत्या एवं बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ आदि कई सामाजिक अभियानों में भी सतत संलग्न । आपकी किताब 101लघुकथाएं एवं सम्यक लघुकथाएं राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त मानव संसाधन विकास मंत्रालय व छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा आपकी किताबों का क्रय किया गया है.)
☆ कर्तव्य ☆
शंभू पुलिस वाले के सामने हाथ जोड़ विनती करने लगा- ‘साहब जी! मेरी ट्रक खराब हो गई थी इसलिए समय पर मैं अपने शहर नहीं पहुंच पाया। प्लीज जाने दीजिए साहब जी।’
पुलिस वाले की कड़कदार आवाज गूंजी- ‘साहब जी के बच्चे! एक बार कहने पर तुझे समझ में नहीं आ रहा कि आगे नहीं जा सकता। ‘कोरोना’ की वजह से सीमाएं सील कर दी गई है। कर्फ्यू की सी स्थिति है। १ इंच भी गाड़ी आगे बढ़ाई तो एक घुमाकर दूंगा,समझे सब समझ आ जाएगा।’
पुलिसवाला तो फटकार लगाकर चला गया, किंतु शंभू की भूख से कुलबुलाती आँतें…सारे ढाबे व रेस्टोरेंट बंद…पुलिस का खौफ, रात को १० बजे अब वह जाए तो कहां जाए, साथ में क्लीनर वह भी भूखा। अब क्या होगा ? यही सोच आँखें नम होने लगी, तभी पुलिस वाले को बाइक पर अपनी ओर आता देख शंभू की घिग्गी बंध गई। फिर कोई नई मुसीबत…। शंभू की शंका सच निकली। बाइक उसके समीप आकर ही रुकी। पुलिसवाला उतरा, डिक्की खोली और उसमें से अपना टिफिन निकाल शंभू की ओर यह कहते हुए बढ़ा दिया- ‘लो इसे खा लेना,मैं घर जाकर खा लूंगा।’
शंभू की आँखों से आँसूओं की अविरल धारा बह निकली। वह पुलिस वाले को नमन कर इतना ही कह पाया- ‘साहब जी! देशभक्त फरिश्ते हैं आप। ‘
इस पर पुलिस वाले ने कहा- ‘वह मेरा ऑफिशियल कर्त्तव्य था, और यह मेरा व्यक्तिगत कर्त्तव्य ही नहीं, सामाजिक दायित्व भी है.
© मीरा जैन
उज्जैन, मध्यप्रदेश
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☆ कर्तव्य ☆
(मूळ हिन्दी कथा – कर्तव्य मूळ लेखिका – मीरा जैन अनुवाद – उज्ज्वला केळकर)
शंभू पोलीसवाल्यांना हात जोडून विनंती करत होता, ‘साहेब माझा ट्रक ना दुरूस्त झाला, म्हणून मी वेळेत आपल्या शहरात जाऊ शकलो नाही. प्लीज जाऊ द्या ना साहेब!’
पोलिसांचा कडक आवाजा घुमला, ‘ए, साहेबजीच्या बच्चा, एकदा सांगितल्यावर तुला कळत नाही, तू पुढे जाऊ शकत नाहीस. ‘करोंना’ मुळे सीमा सील केल्या आहेत. कर्फ्यूच आहे. एक इंच जरी ट्रक पुढे सरकला तरीही लाठी फिरवेन. कळलं, मग सगळं ल्क्षात येईल.’
पोलीसवाला दरडावून निघून गेला पण भुकेने कळवळ कळवळणारं शंभूचं पोट … सगळे ढाबे, रेस्टोरंटस बंद. पालिसांची भीती. रात्री 10ची वेळ. आता त्याने जायचं म्हंटलं तरी कुठे जायचं? बरोबर क्लीनर . त्यालाही भूक लागलेली. आता कसं होणार.? विचाराने त्याच्या डोळ्यात पाणी जमलं.
एवढ्यात तो पोलिस पुन्हा बाईकवरून येताना दिसला. शंभूची तर जीभच टाळ्याला चिकटली. आता आणखी काय झालं? कसलं नवीन संकट? शंभूला वाटलं, आपली शंका खरी आहे, कारण बाईक त्याच्याच दिशेने येत होती.
पोलीस बाईकवरून उतरला. डिककी उघडली. त्याने त्यातून टिफीन काढून शंभूच्या हातात दिला.
‘ हे घे खाऊन. मी घरी जाऊन जेवीन. ‘
शंभूच्या डोळ्यातून अविरत अश्रू धारा वाहू लागल्या. पोलिसाला प्रणाम करत तो म्हणाला, ‘ साहेब, आपण देवदूत आहात, पण मगाशी….’ यावर पोलीस म्हणाला, ‘ते माझं राष्ट्रीय कर्तव्य होतं आणि हे माझं व्यक्तिगत कर्तव्यच नाही, तर सामाजिक दायित्वदेखील आहे.
© श्रीमति उज्ज्वला केळकर
176/2 ‘गायत्री ‘ प्लॉट नं12, वसंत साखर कामगार भवन जवळ , सांगली 416416 मो.- 9403310170
अच्छी रचना