श्री संतोष नेमा “संतोष”

 

(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी  कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप  कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं.    “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है  श्री संतोष नेमा जी की होली के रंग में सराबोर भगवान् श्रीकृष्ण जी पर आधारित बृजभाषा में रचित दो भावपूर्ण रचनाएँ  “होरी खेलें ………”। आप श्री संतोष नेमा जी  की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार पढ़  सकते हैं . ) 

☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 28 ☆

☆ होरी खेलें ………  ☆

मोरो मोहन रँग रंगीलो

बहियाँ पकरि जबरन रँग डारे, ऐसो श्याम छबीलो

छाय रही छवि छटा छबीली, केसर घोलो पीलो

हिल मिल खें सब सखियाँ आई, करें कृष्ण को गीलो

कटि- लंहगा गल-माल कंचुकी, नैनन सो मटकीलो

केसर कीच कपोलन दीनी, रसिया रँग रसीलो

चरण शरण “संतोष”आपकी, जग को तजा कबीलो

 

होरी खेलें कृष्ण मुरारी

राधा के संग रास रचा कर, विंहसे विपिन विहारी

लाल गुलाल गाल पै चुपरत, रँगी चुनरिया सारी

कृष्ण रँग में रँगी सुरतिया, लगती कारी कारी

तरह तरह के इतर सुहाए, चली प्रेम पिचकारी

फूलों के रँग खूबै बरसें, बहके सब नर नारी

मन “संतोष” हिया अनुरागी, कर कर के जयकारी

 

© संतोष नेमा “संतोष”

आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)

मोबा 9300101799

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