हिन्दी साहित्य – आलेख – मनन चिंतन – ☆ संजय दृष्टि  – हरापन ☆ – श्री संजय भारद्वाज

श्री संजय भारद्वाज 

 

(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के कटु अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।  हम  आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक  पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को  संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। )

 

संजय दृष्टि  – हरापन

जी डी पी का बढ़ना
और वृक्ष का कटना
समानुपाती होता है;
“जी डी पी एंड ट्री कटिंग आर
डायरेक्टली प्रपोर्शिएनेट
टू ईच अदर-”
वर्तमान अर्थशास्त्र पढ़ा रहा था..,
‘संजय दृष्टि’ देख रही थी-
सेंसेक्स के साँड़
का डुंकारना,
काँक्रीट के गुबार से दबी
निर्वसन धरा का सिसकना,
हवा, पानी, छाँव के लिए
प्राणियों का तरसना-भटकना
और भूख से बिलबिलाता
जी डी पी का
आरोही आलेख लिए बैठा
अर्थशास्त्रियों का समूह..!

हताशा के इन क्षणों में
कवि के भीतर का हरापन
सुझाता है एक हल-
जी डी पी और वृक्ष की हत्या
विरोधानुपाती होते हैं;
“जी डी पी एंड ट्री कटिंग आर
इनवरसली प्रपोर्शिएनेट
टू ईच अदर-”
भविष्य का मनुष्य
गढ़ रहा है..!

 

आपका दिन हरा रहे । 

©  संजय भारद्वाज , पुणे

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