स्मृतिपटल पर है एक तारीख़, 30 सितम्बर 1995.., हिंदी आंदोलन परिवार की पहली गोष्ठी। पच्चीस वर्ष बाद आज 30 सितम्बर 2019..। कब सोचा था कि इतनी महत्वपूर्ण तारीख़ बन जायेगी 30 सितम्बर!
हर वर्ष 30 सितम्बर को स्मृतिमंजुषा एक नवीन स्मृति सम्मुख रख देती है। आज किसी स्मृति विशेष की चर्चा नहीं करूँगा।..हाँ इतना अवश्य है कि जब संस्था जन्म ले रही थी और सपने धरती पर उतरना चाह रहे थे तो राय मिलती थी कि अहिंदीभाषी क्षेत्र में हिंदी आंदोलन, रेगिस्तान में मृगतृष्णा सिद्ध होगा। आँख को सपनों की सृष्टि पर भरोसा था और सपनों को आँख की दृष्टि पर। आज पीछे मुड़कर देखता हूँ तो अमृता प्रीतम याद आती हैं। अमृता ने लिखा था, ‘रेगिस्तान में लोग धूप से चमकती रेत को पानी समझकर दौड़ते हैं। भुलावा खाते हैं, तड़पते हैं। लोग कहते हैं, रेत रेत है, पानी नहीं बन सकती और कुछ सयाने लोग उस रेत को पानी समझने की गलती नहीं करती। वे लोग सयाने होंगे पर मेरा कहना है, जो लोग रेत को पानी समझने की गलती नहीं करते, उनकी प्यास में ज़रूर कोई कसर होगी।’
हिंआप की प्यास सच्ची थी, इतनी सच्ची कि जहाँ कहीं हिंआप ने कदम बढ़ाए, पानी के सोते फूट पड़े।
हिंआप की यह यात्रा समर्पित है प्रत्यक्ष, परोक्ष कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों विशेषकर कार्यकारिणी के सदस्यों और हितैषियों को। हर उस व्यक्ति को जो चाहे एक इंच ही साथ चला पर यात्रा की अनवरतता बनाए रखी। यह आप मित्रों की ही शक्ति और विश्वास था कि हिंआप इस क्षेत्र में कार्यरत सर्वाधिक सक्रिय संस्था के रूप में उभर सका।
हिंदी आंदोलन परिवार के रजतजयंती प्रवेश के इस अवसर पर वरिष्ठ लेखिका वीनु जमुआर जी ने एक साक्षात्कार लिया है। आज के महापर्व को मान देकर ‘ई-अभिव्यक्ति’ ने भी इसे सचित्र प्रकाशित किया है। इसका लिंक संलग्न है। गत सप्ताह ‘आसरा मुक्तांगन’ के नवीन अंक में भी यह साक्षात्कार छपा था। सुविधा के लिए प्लेन टेक्स्ट प्रारूप में भी इसे संलग्न किया जा रहा है। इसे पढ़ियेगा, पहली से 238वीं गोष्ठी की हिंआप की यात्रा को संक्षेप में जानियेगा और संभव हो तो अपनी बात भी अवश्य कहियेगा।
अंत में एक बात और, दुष्यंत कुमार का एक कालजयी शेर है-
कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो…!
सिर झुकाकर कहना चाहता हूँ कि- पच्चीस वर्ष पहले तबीयत से उछाला गया एक पत्थर, आसमान में छोटा-सा ही सही , छेद तो कर चुका।..
*उबूंटू!*
संजय भारद्वाज
संस्थापक-अध्यक्ष,
हिंदी आंदोलन परिवार