श्री संजय भारद्वाज
(श्री संजय भारद्वाज जी का साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं और जीवन के कटु अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं। हम आपको प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुँचा रहे हैं। अब सप्ताह के अन्य दिवसों पर आप उनके मनन चिंतन को संजय दृष्टि के अंतर्गत पढ़ सकेंगे। )
☆ संजय दृष्टि – ईडन ☆
…..उस रास्ते मत जाना, आदम को निर्देश मिला। आदम उस रास्ते गया। एक नया रास्ता खुला।
….पानी में खुद को कभी मत निहारना। हव्वा ने निहारा। खुद के होने का अहसास जगा।
….खूँख़ार जानवरों का इलाका है। वहाँ कभी मत घुसना।….आदम इलाके में घुसा, जानवरों से उलझा। उसे अपना बाहुबल समझ में आया।
…..आग से हमेशा दूर रहना, हव्वा को बताया गया। हव्वा ने आग को छूकर देखा। तपिश का अहसास हाथ और मन पर उभर आया।
….उस पेड़ का फल मत खाना। आदम और हव्वा ने फल खाया। ईडन धरती पर उतर आया।
संजय जी की रचनायें अत्यंत गूढ़, तार्किक और सोचने पर विवश करती हैं। तीक्ष्ण चिंतन और विचार मंथन से उत्पत्तित एक अनोखी विचार श्रृंखला जो अनेक सामयिक विषयों पर नए सूत्र प्रतिपादित करते हुए सरल जीवनोपयोगी हल प्रदान करती है।
वाह्ह्ह्ह प्रेरित करती तार्किक प्रस्तुति
वाह बहुत अच्छा विश्लेषण