डॉ निशा अग्रवाल
☆ आलेख – ज़िंदगी का एलबम ☆ डॉ निशा अग्रवाल ☆
आज की इस रफ्तार दुनिया मे हम सभी इतने खो से गए है कि हमे खुद का ख्याल तक नही। बस भाग ही भाग रहे है उस दिशा में जिसे हम ठीक से जानते तक नही। आखिर क्यों?
क्योंकि सभी भाग रहे है तो हम भी भाग रहे है कि कहीं हम पीछे ना रह जाएं,कहीं हमसे कुछ पीछे ना छूट जाए।
अरे!उसका क्या जो वास्तव में हमसे बहुत पीछे छूट गया जैसे हमारी यादें, जीवन के कीमत पल, संघर्ष, सुख-दुख के भाव और ना जाने ऐसे कितने लोग, जो कभी इस दुनिया मे लौट कर नही आएंगे।
उदासी सी छा जाती है, मन भावुक सा हो उठता है जब भी उन यादों ,उन पलों,उन व्यक्तियों के बारे में सोचती हूँ।कभी मन फूट -फूट कर रोने को करता है तो कभी मुस्कराने लग जाती हूँ।जब भी उन पलों को याद करती हूँ ,तो अहसास करती हूँ जैसे ज़िंदगी मे बहुत कुछ खो दिया है।
एक दिन अलमारी साफ करते वक्त मुझे पुरानी तस्वीरें, एक नोटबुक के अंदर चिपकी हुई मिली।क्योंकि उस वक्त ना मोबाइल और ना ही सेल्फी ।
लेकिन आज के समय मे हम प्रतिदिन स्वयं को बदलने की चेष्टा में रहते हैं।रोज़ स्टेटस बदलते है तो रोज़ सेल्फी के पात्र बदलते है।
मेरे मन मे बार बार यही ख्याल आता है कि क्या हमारी यादें समय के साथ बदल सकती है? नही ना,
नई यादें तो पुरानी यादों के साथ जुड़ जाती है लेकिन पुरानी यादें कभी समय मे घुलकर कभी खत्म नही होती।
ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीरों का ये अदभुत एलबम रिश्तों को संजोकर रखता है।जब भी उन एलबम को खोलती हूँ तो यादों की ढेर सारी तितलियां मेरे आस- पास उड़ने लगती है।
आज का युग डिजिटल और रंगीन हो गया है।जब मर्ज़ी आयी एलबम से किसी को भी उड़ा दिया जाता है और किसी को भी जोड़ दिया जाता है।रिश्ते एवं अहसासों में यूँ मानो कि कृत्रिमता आ गयी है।
ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीरों में नेचुरल / प्राकृतिक मुस्कराहट दिखाई देती थी ,लेकिन आज ज़माना रंगीन जरूर हो गया है,लेकिन चेहरे पर सिर्फ खोखली मुस्कराहट की छवि ही नज़र आती है।
© डॉ निशा अग्रवाल
एजुकेशनिस्ट, स्क्रिप्ट राइटर, लेखिका, गायिका, कवियत्री
जयपुर, राजस्थान
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
Thanks alot editor of e-abhivyakti Hemant sir & Your Whole Team
Wow?✨✨
Shandaar??
Nice Writing !!!