श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “कयामत “।)
आप इसे प्राकृतिक आपदा कहें,विपत्ति कहें,ईश्वर का प्रकोप कहें,लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि इस बार बारिश, बाढ़, और भू -स्खलन ने जो कहर बरपाया है,और उससे जो जान माल की हानि हुई है,वह किसी तबाही से कम नहीं। इसके पहले कि आदमी के सब्र का बांध टूटे, नदियों के रौद्र रूप को देखकर,प्रशासन को कई बांधों के गेट खोलने पड़े।
बस फिर तो कयामत आनी ही थी।
पूरा उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश तो इस तबाही की चपेट में आया ही,धार्मिक स्थान और पर्यटन स्थल सभी इस बार मूसलाधार बारिश और बाढ़ के पानी का निशाना बने। हरिद्वार हो या जोशीमठ, गंगोत्री हो या अमरनाथ,सोलन,मंडी और मनाली,सब तरफ पानी ही पानी,तबाही ही तबाही।।
इस बार दिल्ली भी डूबने से नहीं बची। विकास की राह में जब प्रकृति का प्रकोप अपना रौद्र रूप दर्शाता है, तो सारे मंसूबे धरे रह जाते हैं। सरकार कितना खर्च करती है इन प्राकृतिक स्थलों के विकास के लिए। यह सब धार्मिक श्रद्धालुओं और पर्यटकों की सुविधा के लिए ही तो किया जाता है। लेकिन जब प्रकृति ही विपक्ष का रोल अदा करने लगे, तो कोई भी क्या करे।
यह एक गंभीर समस्या है, कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं। आपदा प्रबंधन तो सक्रिय है ही, जो पीड़ित हैं, और वहां जाम में फंसे हुए हैं, वे भी अपने मोबाइल कैमरे से तस्वीरें खींच खींच कर भेज रहे हैं। सरकार भी चिंतित है और मीडिया भी सक्रिय। हेलीकॉप्टर से बचाव कार्य भी होंगे, और माननीयों द्वारा भी परिस्थिति का जायजा लिया जाएगा। राहत कार्य जारी हैं, आर्थिक सहायता की भी घोषणा होगी ही।।
इस बार कोई सरकार को दोष नहीं दे रहा। सड़कें और पूल जो क्षतिग्रस्त हुए हैं, उन्हें पुनः ठीक किया जाएगा। विकास की राह हमेशा कठिन ही होती है, लेकिन कभी परिस्थितियों से हार नहीं मानी जाती।
फिर भी हर त्रासदी हमें कुछ सबक सिखला कर ही जाती है। दुष्यंतकुमार ने आसमान में सूराख करने को कहा था, यहां तो मानो आसमान ही टूट पड़ा।
मौसम की चेतावनी के साथ रेड अलर्ट ही नहीं, आजकल ऑरेंज अलर्ट और पर्पल अलर्ट भी जारी होने लग गए हैं। जब धरती दुखी होती है, फट जाती है, आसमान से भी दुख सहा नहीं जाता, बादल फट जाते हैं।।
जब प्रकृति हंसती है, इंसान हंसता है, लेकिन जिस दिन प्रकृति रोने लगती है, ग्लेशियर पिघलने लगते हैं, पहाड़ खिसकने लगते हैं, उसका खामियाजा इंसान को भी भुगतना पड़ता है। अनुशासन और शिष्टाचार और विकास और भ्रष्टाचार कभी साथ नहीं चल सकते। जब भ्रष्टाचार ही शिष्टाचार बन जाए तो बेचारे बिकास बाबू भी क्या करे।
बहुत पहले फिल्म उपकार के एक पात्र लंगड़ ने एक बात कही थी, आसमान में उड़ने वाले, मिट्टी में मिल जाएगा। ईश्वर ने हमें पंख तो दिए नहीं, लेकिन हमें भी पंछियों की तरह उड़ने का शौक चर्राया। जल, थल और नभ तीनों लोकों पर इंसान ने कब्जा कर लिया और उसका मनमाना दुरुपयोग शुरू कर दिया।।
आज आम नागरिक हो या सरकार, सबकी प्राथमिकताएं बदल गई हैं। जन कल्याण का स्थान स्वार्थ और खुदगर्जी ने ले लिया है। एक समय था, जब इस तरह की आपदाओं पर समाज में थोड़ी गंभीरता, संजीदगी और चिंता नजर आती थी। क्या यह आपातकाल नहीं।
हमने अपने नेताओं को भगवान का दर्जा दे दिया है। बस उनका आव्हान हो, और हम नींद से जाग जाएं। वाकई बड़ी गंभीर परिस्थिति है, लेकिन हम कर भी क्या कर सकते हैं, ईश्वर की मर्जी के आगे। जो करेगी सरकार ही करेगी, हमारे नेता ही करेंगे, हमें प्रशासन पर भरोसा है। कपड़े, दवाई और खाद्य सामग्री का भी इंतजाम करना है। नुकसान के आंकड़े तो अभी आना बाकी है। महंगाई को भी अभी और बढ़ना ही है।।
झूठे प्रचार तंत्र और विज्ञापन बाजी से कभी सच छुपाया नहीं जा सकता। जब दिव्यता पर भव्यता हावी हो जाती है, तो दिव्य शक्तियां रुष्ट हो जाती हैं। बड़ी मुश्किल से हम कोरोना के प्रकोप से उबरे थे, अब और अब यह प्राकृतिक आपदा। कड़वे सच का सामना तो हमें करना ही होगा।
बहुत तारीफ हो गई अपने आपकी, अब अपनी गलतियों को भी सार्वजनिक रूप से स्वीकार करना होगा। दोषी हम ही हैं, हमारी सरकार नहीं, क्योंकि आखिर सरकार भी तो हमारी ही चुनी हुई होती है। हमें टूटना नहीं मजबूत होना है, एकजुट होना है, तभी हम इस संकट का सामना कर पाएंगे।।
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© श्री प्रदीप शर्मा
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