श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “दो सांडों की लड़ाई“।)
|| Bull fight ||
हमें अंग्रेजी के अक्षर ज्ञान में पहले B फॉर Bat और C फॉर Cat पढ़ाया जाता था। बाद में C फॉर Cat का स्थान C फॉर Cow ने ले लिया। इंसान के बच्चे होते हैं, गाय के बछड़े होते हैं। लड़का लड़की की तरह गाय के भी बछड़ा बछड़ी होते हैं, जो बड़े होकर गाय या बैल बनते हैं। गाय तो खैर हमारी माता है और दुधारू है, लेकिन बैल को, या तो खेत में हल जोतना है अथवा कोल्हू का बैल बनना है।
बैल को अंग्रेजी में ox कहते हैं, जिसका बहुवचन oxen होता है। यही बैल जब बैलगाड़ी में जोता जाता है तो वह bullock बुलॉक कहलाता है। अंग्रेज नहीं चाहते थे कि उनकी फोर्ड गाड़ी के रहते भारत की कच्ची पक्की सड़कों पर कोई स्वदेशी oxford नजर आए, इसलिए बैलगाड़ी को bullock cart यानी बैलगाड़ी कहा जाने लगा। ।
हमारे समाज में गाय दूध देती है इसलिए उसे पूजा जाता है, लेकिन लड़कियां दहेज की शिकार होती थी, इसलिए उन्हें जन्मते ही मार दिया जाता था, जिसे मेडिकल टर्मिनोलॉजी में भ्रूण हत्या कहते हैं। आजकल गौ वंश के साथ ही बेटियों को भी बचाया जा रहा है, पढ़ाया जा रहा है, यह एक शुभ संकेत है।
लेकिन जरा हमारा पशु प्रेम तो देखिए ! हमें हल जोतने वाला, बोझा ढोने वाला, चुपचाप दिन भर मेहनत करने वाला बैल पसंद है, इसलिए हम बचपन में ही उसके पुरुषार्थ को कुचल देते हैं, और गौ वंश फलने फूलने के लिए उसी बछड़े को छुट्टा सांड बना देते हैं, जो बड़ा शक्तिशाली होता है। वह मदमस्त, अपनी मर्जी का मालिक होता है, कोई उसकी नाक में नकेल नहीं डाल सकता। ।
बाजारों में अक्सर ये सांड आपस में लड़ते देखे जा सकते हैं। इनका युद्ध रूस यूक्रेन जैसा नीरस नहीं होता। ये जब आपस में लड़ते हैं, तो इनकी आंखों में खून उतर आता है। बाजार में अफरा तफरी और तोड़फोड़ शुरू हो जाती है। लोग इन पर डंडे बरसाना शुरू करते हैं, लेकिन ऐसा प्रतीत होता है, मानो इन पर डंडे बरसाना, आग में घी का काम कर रहा हो।
बड़ी मुश्किल से जन धन की हानि और बर्बादी के पश्चात् ही इनका युद्ध विराम हो पाता है। कौन जीता कौन हारा, आपस में बातें करती हैं, चम्पा और तारा। ।
इंसान खुद तो आपस में लड़ता ही है, लेकिन वह जानवरों को भी आपस में लड़ाने से बाज नहीं आता। स्पेन का प्रिय खूनी खेल बुल फाइट ही है। इन कथित बैलों को खूब खिला पिलाकर मैदान में उतारा जाता है, इन्हें लाल कपड़ों से भड़काया जाता है। उसके बाद जो हिंसा का तांडव शुरू होता है, वह दर्शकों को आनंद विभोर कर देता है। इसे ही पुरुषों का पैशाचिक सुख कहा जाता है।
लड़ना, लड़ाना और लड़कर सामने वाले पर अपना वर्चस्व स्थापित करना आजकल हमारे सामाजिक जीवन का महत्वपूर्ण अंग हो गया है। कहीं fight को संघर्ष की परिभाषा में बांधा गया है तो कहीं युद्ध की त्रासदी में। होगा शेर जंगल का राजा, उसे पिजरे में बंद कर इतना पालतू बना देना, कि वह सर्कस के मैदान में करतब दिखाने लग जाए, यही पुरुष की फितरत है। ।
स्वार्थ और खुदगर्जी कोई इंसान से सीखे ! दूर क्यों जाएं, हमारी भैंस को ही देख लीजिए। भले ही वह पानी में चले जाए, हमें तो उसके दूध से मतलब है। भले ही भैंस के आगे बीन बजाने से कुछ नहीं होता हो, आजकल दुधारू पशुओं को भी संगीत सुनाया जाने लगा है। What a music therapy !
किसान बहुत निराश होता है जब भैंस किसी पाड़ी को
नहीं, पाड़े को जन्म दे देती है। कभी कभी शहरों में पाड़ा गाड़ी के भी दर्शन हो जाते थे, जो पानी के टैंकर का काम करती थी। ।
सभी शक्तिशाली पशु और हिंसक जानवर, आज के इस इंसान से अधिक शक्तिशाली और खूंखार नहीं हो सकते। यह खुद डरता है और डराता है, लड़ता है और लड़ाता है और बातें बड़ी बड़ी करता है।
आज भी हम बुल फाइट और सांडों की लड़ाई देख रहे हैं, आनंदित हो रहे हैं। हमारी लड़ाई के आगे सांड भी शर्मिंदा है। क्योंकि हमारे पास दिमाग और जबान है। हम जानवर नहीं इंसान जो हैं।।
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© श्री प्रदीप शर्मा
संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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