श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “बजरबट्टू”।)
बचपन में पहली बार यह शब्द मेरे गुरुतुल्य अग्रज श्रद्धेय हरिहर जी लहरी के मुंह से सुना था, जब वे पढ़ाते वक्त अपने विद्यार्थी को संबोधित करते हुए अक्सर कहा करते थे, अरे बजरबट्टू ! तुम्हारे मस्तिष्क में हम जो समझाते हैं, वह प्रवेश करता है भी कि नहीं।
हम तो बजरबट्टू का मतलब तब ही समझ गए थे, लेकिन उसके बाद इस शब्द का प्रचलन लुप्तप्राय हो गया। जब शब्दकोश में मूर्ख, जाहिल और बेवकूफ जैसे शालीन और प्रभावशील शब्द मौजूद हों, तो बेचारे बजरबट्टू को कौन पूछे।।
बहुत समय बाद अचानक कहीं यह शब्द फिर कानों में पढ़ा ! खोज की तो पता चला, पहाड़ी नस्ल के एक घोड़े को भी बजरबट्टू कहा जाता है, जो खच्चर से कुछ मिलता जुलता है। शायद इसीलिए हम आज जाकर यह समझ पाए कि लहरी जी ने उस छात्र को बजरबट्टू क्यों कहा था।
आप बजरबट्टू को यूं ही नजरंदाज नहीं कर सकते, क्योंकि बजरबट्टू एक वृक्ष से निकलने वाले दाने को भी कहते हैं। इस दाने की माला को नजर से बचाने के लिए बच्चों को पहनाया जाता है। बोलचाल की भाषा में जिसे बरबटी कहते हैं, वह भी एक पौधे का बीज ही है, जिसे ही शहरी भाषा में beans कहा जाता है। प्रकृति में ऐसे कितने पौधे और उपयोगी जड़ी बूटियां हैं, जिनसे हम तो दूर हैं, लेकिन आदिवासी और पशु पक्षी भली भांति परिचित हैं।।
जिस तरह बुद्धिमानी किसी की बपौती नहीं, उसी तरह मूर्खता पर भी किसी का एकाधिकार नहीं। कोई मूर्ख है तो कोई वज्र मूर्ख। जरा वज्र मूर्ख में वज्र का वजन तो देखिए, क्या आप उसे टस से मस कर सकते हैं। दुख तो तब होता है जब कुछ लोग इसी अर्थ में जड़ भरत जैसे शब्द का भी प्रयोग कर बैठते हैं। जो संसार की आसक्ति से बचने के लिए जड़वत् रहे, वह जड़ भरत।
बहुत अंतर है उज्जड़ और जड़वत् भरत में, लेकिन कौन समझाए इन बजरबट्टुओं को।
इसी से मिलता जुलता एक और शब्द है नजरबट्टू, जिसका सीधा सीधा संबंध नजर से ही है। हम भले ही अंध विश्वास को ना मानें, फिर भी मां अपने बच्चे को हमेशा बुरी नजर से बचाकर ही रखेगी, और उसकी नजर भी उतारेगी। बुरी नजर वाले, तेरा मुंह काला तो ठीक है, लेकिन आजकल आपको बाजार में आपको नजरबट्टू के मुखौटे भी नजर आ जाएंगे, जिनको पहनना आजकल फैशन होता जा रहा है।।
सभी जानते हैं, उज्जैन टेपा सम्मेलन के लिए भी जाना जाता है। एक अप्रैल मूर्ख दिवस जो होता है। इस विशुद्ध हास्य और साहित्यिक आयोजन की देखादेखी आजकल राजनेता बजरबट्टू सम्मेलन का आयोजन करने लग गए हैं। जो असली है, उसे नकली से छुपाया नहीं जा सकता।
जो अभी नेता है, वही आज का वास्तविक अभिनेता है।
बजरबट्टुओं को किसी की नजर नहीं लगती। अपनी असलियत नजरबट्टू के मुखौटे में छुपाने से भी क्या होगा। कल ही एक ऐसे कलाकार का जन्मदिन था, जो झुमरू भी था और बेवकूफ भी। खुद हंसता था, सबको हंसाता था। एक बेहतरीन, संजीदा इंसान, अभिनेता, सफल गायक, प्रोड्यूसर, डायरेक्टर, संगीत निर्देशक, क्या नहीं था वह। जैसा अंदर था, वैसा बाहर था, करोड़ों प्रशंसकों का चहेता किशोर कुमार। उसी का एक मस्ती भरा गीत;
सच्चाई छुप नहीं सकती
बनावट के उसूलों से।
कि खुशबू आ नहीं सकती
कभी कागज़ के फूलों से।।
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© श्री प्रदीप शर्मा
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