श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “उड़न किस।)  

? अभी अभी # 125 ⇒ उड़न किस? श्री प्रदीप शर्मा  ? 

 

इस नश्वर संसार में उड़न खटोले से लगाकर उड़न परी और उड़न सिख के बीच इतनी उड़ती उड़ती चीजें हैं, कि इन्हें देखकर एक साधारण इंसान का तो सर ही चकरा जाए। क्या पता, कब कोई एलियन उड़न परी, उड़न तश्तरी से इस धरती पर उतर आए, जिसे देख उड़न दस्ता भी आश्चर्य में पड़ जाए और उसका एक एलियन किस, हमारे धरती के फ्लाइंग किस पर भारी पड़ जाए।

जब एक मक्खी उड़ती हुई, आपके मुंह पर फ्लाइंग किस मारकर उड़ जाती है, तो आप उसका क्या बिगाड़ लेते हो। हमने वे दिन भी देखे हैं जब खटमल हमारा खून चूस रहे हैं, और डैंड्रफ के कारण हम अपना सर खुजा रहे हैं। भला हो, ऑल आउट, काला हिट, मच्छरदानी, पैंटीन शैंपू और लक्ष्मण रेखा का, जो हमें इन उड़ते मक्खी, मच्छर और रेंगती छिपकली, चींटी मकोड़े और कॉकरोचों से हमारा और हमारी बालों की रूसी का भी बचाव करती रहती हैं।।

हर इंसान को उड़ती खबर और उड़ती नज़र से सावधान रहना चाहिए। कोई अच्छी बुरी खबर उड़ते उड़ते कहां पहुंच जाए, कहा नहीं जा सकता। वे दिन हवा हुए, जब उड़ते हुए शांतिदूतों के जरिए प्रेम संदेश और मित्रता संदेश भेजे जाते थे। सरकारी आदेश तो डुगडुगी पीटकर ही सुनाया जाता था। सुनो, सुनो, सुनो ! और सबको सुनना भी पड़ता था।

फिर काम की खबरें भी बेतार के तारों के जरिए भेजी जाने लगी। बेतार की भाषा किसी गागर में सागर से कम नहीं होती थी। शब्द और अक्षरों में कोई भेद नहीं होता था। कई बार तो अर्थ का अनर्थ भी हो जाता था।।

फिर आया सरस्वतीचंद्र का जमाना, जब “फूल तुम्हें भेजा है खत में, फूल नहीं मेरा दिल है“, जैसे संदेश फूलों के जरिए भेजे जाने लगे। किसी भी पुरानी किताब में सूखा, मुरझाया कोई गुलाब का एक फूल कोई भूली दास्तान बयां करता नजर आता था।

हमारे नीरज जी तो फूलों के रंग से, और दिल की कलम से रोज ही पाती लिखते थे।

आज तो स्थिति यह है कि इधर व्हाट्सएप पर संदेश लिखा जा रहा है, और उधर उन्हें उसकी भी खबर प्रसारित हो रही है। किस टाइप का प्रेम संदेश है यह,

जो लिखने से पहले ही बयां होने को लालायित है, उत्सुक है।।

आसमान में उड़ते बादल भी विरही प्रेमियों के दिल का हाल जानते हैं। सावन के बादलों, उनसे ये जा कहो, और ;

जा रे कारे बदरा,

सजना के पास।

वो हैं ऐसे बुद्धू,

कि समझे ना प्यार।।

हमारे आनंद बक्षी जी ने सावन को लाखों का बताया है, और नौकरी को दो टकियाॅं की। ऐसे फुल टाइम फूल, गुलदस्ता और फ्लाइंग किस भेजने वालों से भगवान हम शरीफों को बचाए। हम तो चाहते हैं, इस अधिक मास के सावन में दाल रोटी खाएं, और प्रभु के गुण गाकर कुछ पुण्य कमाएं।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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