श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सफेद झूठ”।)
क्या सच और झूठ को भी रंग से पहचाना जा सकता है, पानी का तो कोई रंग नहीं होता, इसीलिए दूध में पानी मिलाया जाता है। अगर झूठ भी सफेद रंग का हुआ, तो उसमें भी मिलावट की संभावना है।
अगर झूठ में भी मिलावट होने लगी तो फिर सच का तो भगवान ही मालिक है, यकीन मानिए, आपको खाने को कभी असली जहर भी नसीब नहीं होगा।
लहू का रंग एक है, अमीर क्या गरीब क्या, तो सुना था, रात के अंधेरे में भी आसानी से पहचान लिया जाए, वह सफेद झूठ ! चलो जी, यह भी मान लिया, तो फिर सच की भी तो कुछ पहचान होगी। सच सच बता, सच ! तेरा रंग कैसा ?
सच में मिलावट कोई बर्दाश्त नहीं करता। असली घी, खरा सोना, और तराशा हुआ हीरा होता है सच, सच का कोई रंग नहीं होता, सच, सोलहों आने सच होता है।।
अगर आपकी जेब में सिर्फ चार आने हैं, तो आप कितना सच खरीद पाएंगे। आने कब, दशमलव में नये पैसे हो गए, पैसा काला और सफेद धन हो गया, सबसे बड़ा रुपया हो गया और पैसा भी बाजार से गायब हो गया। जी हां, और यही सच है कि सच भी सोलहों आने सच, बाजार से आने और नये पैसे की तरह चलन से बाहर हो गया।
अब सभी ओर सफेद झूठ का कारोबार जोर शोर से चल रहा है। हम तो नहीं कहते लेकिन दुनिया तो कहती है, झूठे का बोलबाला, सच्चे का मुंह काला। इधर सच को अपनी सूरत दिखाने में भी शर्म आ रही है और उधर सफेद झूठ दिन में दस बार सर्फ से धुले साफ सफेद कपड़े पहनकर रोड शो कर रहा है।।
सच और झूठ दोनों का कारोबार चल रहा है। अब सच ने सफेद धन का चोला पहन लिया है और झूठ ने काले धन का। एक नंबर को हमने सच मान लिया है और दो नंबर को दस नंबरी। एक नंबर वाला दूध से धुला है, और दो नंबरी काला बाजारी।
चारों ओर काले धन और सफेद झूठ की जुगलबंदी चल रही है। कड़वा सच कहीं खामोश सिसकियों और आक्रोश में अपना दम तोड़ रहा है। सच की रोशनी से भी कहीं सफेद झूठ की आँखें चौंधियाई हैं ! लगता है सच को ही मोतियाबिंद हो गया है और आँखों के डॉक्टर ने भी feko सर्जरी के पश्चात् जो लैंस लगाया है, उससे भी अब सफेद झूठ ही नजर आ रहा है। सच में कहां आ गए हैं हम लोग।।
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© श्री प्रदीप शर्मा
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