श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सच उगलवाने की मशीन “।)
कलयुग में हम झूठ बोलते हैं, और सच हमसे उगलवाया जाता है। वैसे शास्त्रों के अनुसार झूठ बोलना पाप है, लेकिन सत्यवादी हरिश्चंद्र बनना भी कोई समझदारी नहीं।
आज की मिलावट की दुनिया में सच और झूठ के अनुपात से ही दुनिया चलती है। इसीलिए अदालतों में सच बोलने के लिए भी कसम खानी पड़ती है, गीता पर हाथ रखना पड़ता है।
हमारे सच झूठ से कोई पहाड़ नहीं टूट जाता, लेकिन अपराधियों से सच उगलवाना बहुत जरूरी हो जाता है, जिसके लिए उनका lie detector test होता है, जिसे पॉलीग्राफ टेस्ट भी कहते हैं, जो शरीर के हाव भाव, दिल की धड़कन और सांस के चलने की गति के आधार पर झूठ को पकड़ता है और सच उगलवाता है।।
लेकिन कोई जरूरी नहीं कि इस तरीके से आदतन अपराधियों से सच उगलवा लिया जाए, और झूठ पकड़ में आ जाए। हमारी पुलिस की शुद्ध हिंदी और थर्ड डिग्री भी जब काम नहीं करती, तब इन अपराधियों का नार्को टेस्ट होता है, जिसमें इन्हें दवा के जरिए उस अर्ध – अचेतावस्था में लाया जाता हैं, जहां ये सच उगल दें।
आम जिंदगी में झूठ बोलना कोई अपराध नहीं !
तारीफ इसमें है कि झूठ इस तरीके से, आत्म विश्वास से, बार बार बोला जाए, कि वह सच की शक्ल अख्तियार कर ले।
जब पुख्ता सबूतों के साथ झूठ बोला जाता है, तो कभी कभी तो बेचारे सच को भी शर्मिंदा होना पड़ता है।।
सच बोलने के लिए आपको सिर्फ भगवान से डरना पड़ता है। जब एक बार वह डर भी गायब हो जाए, फिर तो झूठ का रास्ता साफ हो जाता है। लोग झूठे के मुंह ही नहीं लगते। वैसे भी, हट झूठे कहीं के, और खाओ मेरी कसम, तो हमारा आम तकिया कलाम है ही।
जिन लोगों में आत्म विश्वास की कमी है जिनकी याददाश्त कमजोर है, और जिनमें झूठ बोलने से अपराध बोध होता है, उन्हें झूठ बोलने से परहेज करना चाहिए। गप मारना और लंबी लंबी हांकने का जिनको अभ्यास होता है, वे बड़े लोकप्रिय होते हैं। दफ्तरों में उनके पास टाइम पास करने वालों की भीड़ लगी रहती है। जिस दिन वे दफ्तर नहीं आते, दफ्तर की रौनक गायब हो जाती है।।
झूठ अगर तेज है तो सच ओज है। झूठ अगर आडंबर, दिखावा और चमक दमक है, तो सच सादगी, ईमान और सरलता है। सच शाश्वत, सनातन है, झूठ नश्वर है, भ्रम जाल है।
सच वह टंच सोना है, जिससे आभूषण नहीं बनाए जा सकते। थोड़ा झूठ का खोट हो, तो सच भी आकर्षक बन जाता है। रोटी में नमक जितना झूठ तो सच में भी चल सकता है, लेकिन अधिक झूठ चरित्र के लिए घातक है।
हमारी दुआ में असर नहीं, और तो और बद्दुआ भी नहीं लगती। भगवान हमारी नहीं सुनता, सच का कोई साथ नहीं देता। शायद यह सत्य का ही प्रताप हो, जब किसी जमाने में, पीड़ित का दिया शाप फलीभूत हो जाता था। हाथ में लेकर जल छोड़ने के साथ जो संकल्प ले लिया, सो ले लिया, शाप दे दिया सो दे दिया। फिर भले ही आप भगवान ही क्यों न हो।।
हम पुण्यात्माओं के शाप से तो बच सकते हैं, लेकिन झूठ का अभिशाप फिर भी हमारा पीछा नहीं छोड़ने वाला। जब नियति और प्रकृति आपको शाप देने लगे, तो आप कहां जाओगे। त्राहिमाम त्राहिमाम !
झूठ का दामन छोड़, जितनी जल्दी सच के रास्ते पर हम चल निकलें, इसी में हमारी और इस संसार की भलाई है ;
बहुत कठिन है
डगर पनघट की।
कैसे भर लाऊं,
मैं जमना से मटकी।।
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© श्री प्रदीप शर्मा
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