श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “एवरफ्रेश”।)
एक टॉर्च अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही है, जिसमें बैटरी वाले सेल भी उसी कंपनी के डाले जाते थे। निप्पो और ड्यूरोसेल के जमाने में भी तो टॉर्च की रोशनी में कैद, एक काली बिल्ली की तस्वीर वाले, एवरेडी EVEREADY के सेल आज भी भरोसेमंद हैं।
Ready यानी तैयार से बना है यह शब्द एवररेडी, यानी सदा सेवा के लिए तैयार, जो अब घिस घिसकर एवरेडी हो गया है। जो भी चीज चलेगी, वह घिसेगी भी जरूर। सेल घिसते नहीं, इनका मसाला खराब हो जाता है। आज वही टॉर्च के सेल बड़ी, छोटी साइज में घड़ी, रिमोट और बच्चों के खिलौनों में इस्तेमाल होते हैं। वैसे बैटरी कहां कहां नहीं इस्तेमाल होती, मोबाइल से लगाकर कार, स्कूटर तक। बैटरी लो होना, एक आम बात है। पहले एक चुस्की चाय की हो जाए।।
चाय चीज ही ऐसी है। क्या ऐसी भी कोई चीज है, जो आपको सदा तरो ताजा, एवरफ्रेश रखती है।
हमारे घर के पास एक बेकरी थी, उसका नाम ही एवरफ्रेश बेकरी था। क्या बनाती है बेकरी, ब्रेड, बिस्किट और केक वगैरा।
छोटे छोटे कस्बों और गांवों में लोग बेकरी का सामान नहीं खाते थे। बिस्किट भी तो मरे अंग्रेज ही लाए थे। पारसी, सिंधी और मुसलमान बेकरी का धंधा करते थे, अंडा तो डालते ही होंगे। राम, राम, हम तो हाथ भी नहीं लगाते।।
लेकिन छोटे छोटे शहरों में ऐसा नहीं था। ब्रेड, बिस्किट का उपयोग आम हो गया था। जगह जगह बेकरी खुलती जा रही थी। पार्ले जी, और ब्रिटेनिया बिस्किट चाय के साथ घुल मिल गए थे।
दबे पांव मॉडर्न और पॉपुलर ब्रेड ने आखिर घरों में पांव जमा ही लिया।
मुझे याद है, एवरफ्रेश की ब्रेड और भावे की मक्खन की टिकिया रोज घर में आती थी। एक अनार सौ बीमार वाला मामला था। फिर भी सबको प्रसाद मिल ही जाता था। बिस्किट हमारी पहुंच के बाहर थे। मां घर में ही शकरपारे बना देती थी।।
तब एवरफ्रेश बेकरी की एक स्कीम थी, आप आटा, घी, शकर इत्यादि घर से तौलकर ले आइए, हम बनवाई शुल्क लेकर आपको ताज़ा बिस्किट बनाकर दे देंगे। हमारे मुंह में पानी तो आना ही था। घर बैठे बेकरी आई। घी तेल के पुराने टिन के डब्बों में गर्मागर्म बिस्किट ठसाठस भर दिए गए।
जो जब आता, दो चार बिस्किट निकालकर भाग जाता। कोई कुबेर का खजाना तो था नहीं, जो ताले में रखा जाए। बहुत हुए तो आठ पंद्रह दिन। घर वालों ने तौबा कर ली।
तुम तो चाय और रात की रोटी के लायक ही हो।।
इस चटोरी जबान को पहली बार बिना तले समोसे का चस्का भी एवरफ्रेश बेकरी ने ही लगाया। एम जी रोड, कोर्ट कंपाउंड के पास भी इनकी ही एवरफ्रेश शॉप थी, बड़ी रौनक रहती थी वहां, किसी जमाने में। शहर के सभी गणमान्य लोग वहां अक्सर शाम को दिखाई दे जाते थे।
आज एवरफ्रेश बेकरी का कोई पता नहीं, बेकरी प्रॉडक्ट आजकल कुकीज कहलाते हैं, आज की पीढ़ी भारी भरकम सैंडविच और पिज्जा, पास्ता, बर्गर की दीवानी है। पुराने इंदौरी आज भी पोहा जलेबी और कचोरी समोसे से आगे नहीं बढ़े। जिस घर में आज भी सेंव और नमकीन नहीं, वह इंदौर का रहवासी नहीं।।
आज भी जहां खाने पीने की फ्रेश, ताजा और जायकेदार वैरायटी उपलब्ध हो, शौकीन लोग एवरेडी टॉर्च की तरह, ढूंढते हुए पहुंच ही जाते हैं। जहां भी स्वाद, सुगंध और जायका, वहां हाज़िर एक इंदौरी ! एवरफ्रेश, इंदौर ..!!
♥ ♥ ♥ ♥ ♥
© श्री प्रदीप शर्मा
संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर
मो 8319180002
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈