श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका व्यंग्य – “साहित्यकार श्रीश्री १००८ “।)
अभी अभी # 139 ⇒ साहित्यकार श्रीश्री १००८… श्री प्रदीप शर्मा
होली का मौसम नहीं, एक अप्रैल भी नहीं, यह उपाधियों का नहीं, लेखकों, साहित्यकारों और व्यंग्यकारों की सूची बनाने का मौसम है। असेसमेंट ईयर की तरह वर्ष २०२३-२४ की सौ साहित्यकारों की सूची जारी कर दी गई। शगुन के १०१ भी नहीं, पूरे कलदार सौ। पढ़कर और गिन परखकर देख लीजिए, पूरा टंच सिलेक्सन है।
हमने सोचा, कुछ अपने वाले नाम जोड़कर इसे १०८ तक पहुंचा दिया जाए, श्री श्री १०८ सबके आगे, अपने आप लग जाएगा, लेकिन किसी हसरत जयपुरी ने बीच में ही साहित्य और कलामंडल के १११ प्रकाशवान सितारों की, ए टू ज़ेड अल्फाबेटिकल सूची जारी कर दी, जिसमें प्रथम स्थान पर अरुण कमल भले ही ना हों, लेकिन ब से बैंक वाले सुरेश कांत, जरूर निन्यानवे स्थान पर मिल जाएंगे।।
साहित्य में आज किसका स्थान कहां है, गए जमाने सूर, तुलसी और केशवदास के, आप जिसे जहां चाहें वहां बिठा दें, लेकिन असली लेखक और साहित्यकार तो वही है, जो पाठकों के दिल में बैठा हो। आखिर मसखरी का भी कोई वक्त होता है।
हमने भी सोचा, क्यों न वर्ष 2024-25 की एक लंबी सारी सूची हम भी जारी कर दें, शीर्ष लेखक, व्यंग्यकार और साहित्यकारों की, जिसका शीर्षक ही श्रीश्री १००८ हो। जी हां, जब अकेले रविशंकर श्रीश्री रविशंकर हो सकते हैं, तो हमारे १००८ साहित्यकार श्रीश्री क्यों नहीं।।
अभी समय बहुत है, मौका भी है और दस्तूर भी ! श्रीश्री १००८ में शायद सभी प्रतिभाओं के साथ न्याय हो सकेगा। केवल सूची जारी करने से काम नहीं चलेगा। इनका शॉल और श्रीफल से सम्मान भी किया जा सकता है।
जो जहां है, वहीं उसका सम्मान वहीं के पाठक मिलकर कर दें। चौंकिए मत, यह सूची पाठकों द्वारा ही बनाई जाएगी जिसमें शायद सुरेंद्र मोहन पाठक का नाम भी हो। जिसे मिर्ची लगना हो लगे। कौन लोकप्रिय है और कौन नहीं, इसका पता साहित्य अकादमी से ज्यादा तो सुधी पाठकों को होता है।।
अगर गंभीर चिंतन नहीं कर सकते, तो कम से कम मजाक तो ढंग का हो।
अगर यह मजाक बेढंगा हो तो संभावित श्रीश्री १००८ साहित्यकारों से अग्रिम माफी। हम यह भी जानते हैं, साहित्य में इसे गंभीर चिंतन कहा भी नहीं जाता।
एक पाठक और एक मतदाता की एक जैसी हालत है। जो परोस दिया उसे स्वीकार कर लो। अगर पसंद नहीं, तो दूसरी दुकान देख लो। पूरा घान ही ऐसा है। कहीं अल्फाबेटिकल तो कहीं इल्लॉजिकल।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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