श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “साधो, ये मुर्दों का गांव ..!!“।)
ना इंसान की, ना भगवान की, ना जमीन की ना आसमान की, ये तो दास्तां है एक अलग ही संसार की। ये सच है या झूठ, अफसाना है या हकीकत, थोड़ी ज़मीनी थोड़ी आसमानी, ये है, तेरी, मेरी, उसकी कहानी।
मैं भूत प्रेत से नहीं डरता, फिर भी डर का भूत मेरे अंदर ही मौजूद रहता है, मुझे डराने के लिए वैसे सांप बिच्छू ही काफी है।
होते हैं कुछ अति व्यस्त लोग, जिन पर हमेशा काम का भूत सवार रहता है, और जिन फुरसती लोगों पर एक बार प्यार का भूत सवार हो जाता है, तो जिंदगी भर नहीं उतरता। जो हमेशा आतंक के साये में जिंदगी गुजारते हैं, डर का भूत कभी उनका पीछा नहीं छोड़ता। ।
जीव, आत्मा और परमात्मा का खेल ही यह संसार है। जीवात्मा और परमात्मा के बीच कहीं आत्मा का भी निवास होता है। जब किसी सीधी सादी आत्मा को दुष्टात्माओं द्वारा इस जीवन में ज्यादा परेशान किया जाता है, तो मरने के बाद वे प्रेत योनि में जाकर प्रेतात्मा बन जाती है। कहते हैं, भूत प्रेत हमेशा साथ साथ किसी इमली के पेड़ पर अथवा किसी खंडहरनुमा हवेली में निवास करते हैं। गुमनाम है कोई, बदनाम है कोई।
हमने तो डायन भी नहीं देखी। जिस इंसान का रोज महंगाई डायन से वास्ता पड़ता हो, उसे क्या कोई डायन डराएगी। चुड़ैल शब्द सुनने में अच्छा लगता है। कोई नहीं जानता यह चुड़ैल कोई सास है या बहू ! वैसे बदमिजाज, चिड़चिड़ी और हमेशा गुस्सा करने वाली महिलाओं को अगर चुड़ैल कहा जाए तो गलत भी नहीं।
बहना कुछ मर्द भी राक्छस से कम नहीं होते। ।
शैतानी करने से कोई बच्चा वास्तविक रूप में शैतान नहीं बन जाता। जब इंसान में ही साधु और शैतान का फर्क मिट जाए, तो शक, शंका, भय और आतंक के माहौल में इंसानियत कहां तलाशी जाए। आज कहां है किसी के होठों पर सचाई, और दिल में भलाई !
साधो, ये मुर्दों का गांव ..!!
© श्री प्रदीप शर्मा
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