श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “बासी कढ़ी “।)
कुछ चीजें ठंडी ही अच्छी लगती हैं। कुल्फी, आइसक्रीम, श्रीखंड और लस्सी गर्म कौन पीता है ! कोल्ड्रिंक और चिल्ड बीयर की तरह ठंडा दूध तक एसिडिटी में अच्छा लगता है, लेकिन ठंडी कढ़ी कौन खाता और खिलाता है भाई।
माना कि कढ़ी, छाछ और दही से बनाई जाती है, और दही, छाछ और दही बड़ा तक, ठंडा ही अच्छा लगता है लेकिन कढ़ी की बात कुछ और ही है। यह गर्म ही खाई और खिलाई जाती है। कभी कभी गर्मागर्म कढ़ी से मुंह भले ही जल जाए, लेकिन कढ़ी का स्वाद मुंह से नहीं जाता। बेसन, हींग, नमक मिर्ची, मैथीदाना, अदरक और मीठी नीम की खुशबू की बात ही कुछ और होती है। कढ़ी अगर पकौड़ी की हो, तो सोने में सुहागा। अगर उसमें सुरजने की फली हो, तो क्या कहना। ठंडे रायते की तरह गर्म कढ़ी भी दोने पर दोने भर भरकर सुड़क ली जाती है।।
अक्सर रायता ही फैलाया जाता है, कढ़ी नहीं ! लेकिन, न जाने क्यूं, बासी कढ़ी सुनते ही मन में उबाल सा आने लगता है। अक्सर सभी खाने की चीजें गर्म ही परोसी जाती हैं, लेकिन पंगत और भंडारे में पहले आवे सो गर्मागर्म पावे, फिर भी सेंव नुक्ती और सब्जी पूरी तो रखी हुई भी चल जाती है, लेकिन ठंडी कढ़ी देखकर ना जाने क्यूं माथा गर्म हो जाता है।
आग के पास जो, जाएगा वो जल जाएगा। सोना हो या चांदी, पिघल जाएगा, बर्तन में पानी हो, तो उबल जाएगा और दूध हो तो उफन जाएगा। जब इंसान ही ठंडी कढ़ी को देखकर आग बबूला होने लगता है, तो बासी कढ़ी को गर्म करने पर ज्यादा उबाल आना स्वाभाविक है।।
बासी कढ़ी में अधिक उबाल क्यूं आता है, हो सकता है, यह कढ़ी की केमिस्ट्री पर निर्भर करता हो। रासायनिक प्रयोगशालाओं में अक्सर घोल, मिक्सचर और गैस ही बनाई जाती है, कौन सा खाद्य पदार्थ कब्ज करता है, और कौन सा गैस, इस पर प्रयोग नहीं किए जाते। फिर भी अन्य द्रव पदार्थों की तुलना में, बासी कढ़ी में उबाल क्यूं अधिक आता है, शायद यह सिद्ध किया जा सके।
जो ठंडी कढ़ी से ही करे इंकार, वो बासी कढ़ी से कैसे करे प्यार ! हमारे लिए बासी कढ़ी में उबाल, मानो खाने में बाल। हम तो ऐसी स्थिति में रायता क्या, कढ़ी भी फैला दें। लोग भले ही कहते रहें, हमारी इस हरकत को देखकर, देखो! बासी कढ़ी में उबाल आ रहा है।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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