श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “विराजमान।)

?अभी अभी # 153 ⇒ विराजमान? श्री प्रदीप शर्मा  ?

 

एक अंदाज़ होता है लखनऊ का, जिसे हम आइए पधारिए कहते हैं, उसे वे आइए तशरीफ लाइए कहते हैं। चलिए साहब, तशरीफ तो हम ले आए, अब तशरीफ कहां रखी जाए, यह भी तो बताइए ! जी क्यों शर्मिंदा करते हैं, पूरा घर आपका है।

जब कि हमारी देसी परम्परा देखिए कितनी सहज है, पधारो सा, और विराजो सा। पधारिए, और कहीं भी विराजमान हो जाइए। चलिए साहब मेहमाननवाजी, खातिरदारी, आदर सत्कार, चायपान, स्वल्पाहार सब कुछ हो गया, अब विदाई में आप क्या कहेंगे। अब आप तशरीफ ले जाइए तो नहीं कह सकते। हां, फिर तशरीफ लाइए, जरूर कह सकते हैं। यानी मेहमान खुद ही तशरीफ लाए भी और ले जाए भी। और अगर गलती से तशरीफ लाना ही भूल गया, तो आप तो उसे अपने दौलतखाने में अंदर आने की इजाजत भी नहीं देंगे। ।

अब हमारा आतिथ्य देखिए, जब अतिथि आया तो हमने उसे उचित आसन पर विराजमान किया और अतिथि, मेहमान यानी पाहुना ने जब विदाई ली, तो हमने उसे हाथ जोड़कर विदा करते, पधारो सा, और आवजो कहा।

अपनी अपनी तहजीब है, मैनर्स हैं, लोग तो आजकल प्लीज वेलकम और बाय से भी काम चला लेते हैं। जब कि हमारे सा शब्द में तो साहब, सर, श्रीमान और जनाब सभी शब्द शामिल है।

विराजमान शब्द इतना आसान नहीं, इसके कई गूढ़ अर्थ हैं। इसमें सुशोभित करने का भाव भी निहित है। किसी की उपस्थिति का जब विशेष अहसास होता है, तब ही इस शब्द का प्रयोग किया जाता है। पहले पधारो, फिर विराजो। ।

जो सर्व शक्तिमान है, किसी को नजर आता है, किसी को नजर भले ही नहीं आता, लेकिन वह जो घट घट व्यापक है, वह हमारे हृदय में भी तो विराजमान है। जिसके बारे में साफ साफ शब्दों में कहा गया है ;

मो को कहां ढूंढे रे बंदे

मैं तो तेरे पास रे।

कितना मान सम्मान है इस शब्द विराजमान में ! शोभायमान का विकल्प ही तो है विराजमान। मान ना मान, जो सर्वोच्च पद पर विराजमान है, उसका ही तो सदा गुणगान है। उस स्थान और उसके महत्व को जानते हुए, आपकी नजरों में जो भी वहां विराजमान है, उस अदृश्य सर्वत्र व्यापक सर्व शक्तिमान को हमारा प्रणाम है।

कोई कहीं भी विराजे, हमारे आराध्य प्रभु श्रीराम तो अयोध्या में ही विराजेंगे।

जगजीत चित्रा भी शायद उसी भाव से श्रीकृष्ण का गुणगान करते नजर आते हैं ;

कृष्ण जिनका नाम है

गोकुल जिनका धाम है

ऐसे श्री भगवान को

बारम्बार प्रणाम है

बारम्बार प्रणाम है।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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