श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “सुखासन”।)

?अभी अभी # 158 ⇒ सुखासन? श्री प्रदीप शर्मा  ?

जब घरों में सोफे कुर्सियां नहीं थीं, तब आगंतुक को सबसे पहले बैठने के लिए आसन दिया जाता था। अगर बैठक हो, तो बैठने की व्यवस्था होती थी, अगर किसी गरीब के घर में तखत चारपाई अथवा टूटी फूटी कुर्सी भी ना हो, तो जमीन पर ही आसन, दरी, अथवा चटाई बिछा दी जाती थी।

किसी भी आरामदायक स्थिति को आसन कहते हैं। नंगी जमीन पर बैठना अशुभ माना जाता है। यही आसन योगासन का भी एक प्रमुख अंग है। अष्टांग योग यम, नियम और आसन प्राणायाम से ही तो शुरू होता है, लेकिन सच तो यही है कि आसन प्राणायाम को ही लोग योग समझ बैठे हैं। वैसे प्राणायाम भी अतिशयोक्ति ही है, थोड़े हाथ पांव हिला लिए, और हो गया योगा।।

तो क्यों न हम भी आज सिर्फ आसन की ही बात करें। अगर आसन में ही सुख नहीं हो, तो काहे का आसन! हमारे महर्षि पातंजल इस बात को भली भांति जानते थे, इसलिए उन्होंने आसन की परिभाषा में ही लिख दिया, स्थिरसुख आसनम् ! यानी जिस स्थिति में आप सुखपूर्वक स्थिर हो बैठे रहें, वही आसन है। शुद्ध हिंदी में इसे any comfortable posture कहते हैं। कितनी आसान परिभाषा है आसन की।

योग की भाषा में आसन को पोश्चर यानी योगासन कहा जाने लगा है। कुछ आसन तो जीव गर्भ में ही कर लेता है, और एक नवजात शिशु की हर क्रिया भी आसन ही होती है। प्रकृति उसकी गुरु होती है। बड़े होते होते वह पांव का अंगूठा भी मुंह में ले लेता है, अगर हम बड़े लोग अगर यह करने जाएं, तो सिर्फ दांतों तले उंगलियां ही दबाते रह जाएं।।

इंसान योग करे ना करे, हर व्यक्ति के कुछ प्रिय आसन होते हैं। मेरा प्रिय आसन सुखासन है। यह मैं जमीन पर बैठकर भी कर सकता हूं, और कुर्सी पर बैठकर भी। इसे हमारी देसी भाषा में पालकी मारकर बैठना कहते हैं। वैसे रीढ़ की हड्डी सीधी रखते हुए आप स्वस्तिकासन और सिद्धासन भी कर सकते हैं और अभ्यासोपरान्त पद्मासन भी लगा सकते हैं। अजी, पद्मासन को तो आसनों का राजा कहा गया है।

अगर आप अपने घुटनों पर ही बैठ गए, तो यह वज्रासन हो गया। वज्रासन में एक खूबी और है, यह आप भर पेट भोजन करने के बाद भी कर सकते हैं। लोगों ने आजकल जमीन पर बैठना ही बंद कर दिया है। जिसका जमीन पर बैठना एक बार छूट गया फिर वह खाना भी टेबल पर ही खाएगा और पाखाने के लिए भी कमोड को ही अपनाएगा।।

खैर, हम तो सुख की बात कर रहे थे। मेरा एक और प्रिय आसन शवासन है।

मरना कहां हमारे हाथ में है, लेकिन शव जैसे पड़े रहने में क्या हर्ज है। मुर्दा कहां कुछ बोलता और सोचता है, बस बिना हाथ पांव हिलाए डुलाए, पड़ा रहता है। आप भी मुर्दे के समान कुछ मत सोचो, कुछ मत बोलो, मस्त शरीर को शिथिल छोड़कर पड़े रहो।

नहीं मरा, तो मरकर देख।

सांस तो फिर भी चल रही है। अहा, कितना सुख है, कितना आनंद है, जीते जी मरने में।

और अगर इसी में नींद लग गई तो ! अरे नेकी और पूछ पूछ, अजी आप कहां इतनी जल्दी मरने वाले हो। आप तो जिंदगी की झंझटों को भूल आराम से पड़े हो। अगर आपकी आंख लग गई, तो समझो यही योगनिद्रा हो गई। विचार शून्य होना तो ध्यान की अवस्था है। लो जी, पड़े पड़े ही ध्यान भी लग गया। बस, जब तंद्रा टूटे, आप उठ बैठो। आप एक बार मर भी गए, और समझो आपका पुनर्जन्म भी हो गया।।

बस इसी तरह रोज जीते, मरते रहें। रोज रात को करवटें बदलना भूल जाएंगे। घोड़े बेचकर सोने वाली, साउंड स्लीप, जो आपकी पूरे दिन भर की थकान दूर कर देगी और आप पुनः दिन भर के लिए तरो ताजा हो जाएंगे।

कितना सुख है इन आसान आसनों में..!!

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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