श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “चिल्ला चोट”।)

?अभी अभी # 160 ⇒ चिल्ला चोट? श्री प्रदीप शर्मा  ?

भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है। कुछ बोलचाल के शब्द शायद हमें शब्दकोश में नहीं मिलें, उपयोग में भी कम ही आते हों, लेकिन व्यवहार में यदा कदा उनसे पाला पड़ ही जाता है।

केवल बादल ही नहीं बरसते, बचपन में पिताजी भी ऐसे ही बरसते थे, मानो बिजली कड़क रही हो, और हम, डर के मारे पसीना पसीना हो, अपनी मां के आंचल में छुप जाते थे। लेकिन जब पिताजी द्वारा लाड़ प्यार की बारिश होती थी, तो हम भी, निर्भय, निश्चिंत हो, भीगकर तरबतर हो जाते थे। ।

दफ्तर में कभी कभी बरसते तो बॉस भी थे, बदले में हम घर जाकर बच्चों को जब डांट पिलाते थे, तो पत्नी की झिड़कियां भी सुननी पड़ती थी, न जाने किसका गुस्सा आकर बेचारे बच्चों पर उतार देते हैं। घर आते ही इन पर भूत सवार हो जाता है।

छोटेपन में, घर में जब हम मस्ती करते और शोर मचाते थे, तो यही सुनने को मिलता था, कैसी चिल्ल पो मचा रखी है, घर को मछली बाजार समझ रखा है।

शायद इसी चिल्ल पो से एक और और ऐसे शब्द की उत्पत्ति हुई है, जो चिल्लाने के साथ साथ चोट भी पहुंचाता है। ।

जी हां, लेकिन वह केवल शब्द की ही चोट होती है। आप चाहें तो उसे डबल मार कह सकते हैं। बड़ा बाजारू लेकिन बड़े काम का शब्द है यह चिल्ला चोट। लेकिन कुत्ते की तरह भौंकने से, चिल्ला चोट मचाना, कभी कभी ज्यादा कारगर सिद्ध होता है।

जो शांतिप्रिय और शरीफ लोग होते हैं, वे इस शब्द से बहुत चमकते हैं। सबके बस का भी नहीं होता, अनावश्यक चिल्ला चोट मचाना ! बिना किसी कारण, सिर्फ लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने का ब्रह्मास्त्र है यह शब्द चिल्ला चोट, जिसमें केवल चिल्ला चिल्लाकर ही सामने वाले को चोट पहुंचाई जाती है। ।

इसके लिए नैतिक बल से अधिक दुस्साहस और समृद्ध शब्दावली की आवश्यकता होती है। जितनी कहावतें, मुहावरे और शायरी से आप इस अस्त्र का उपयोग करेंगे, उतने ही आप अपने मकसद में सफल होंगे।

वैसे चिल्ला चोट हमेशा बिना बात के ही की जाती है। सड़ी सी बात पर आप किसी दुकानदार से भिड़ सकते हो। ये दस का नोट दूसरा दीजिए, इसमें से बदबू आ रही है। जी, यह दूसरा ले लीजिए ! यह तो उससे भी घटिया है। आपके तो हाथ से ही बदबू आ रही है। नहाते धोते नहीं हो क्या। इतना काफी होता है, तमाशा करने के लिए। अगर वह समझदार होगा, तो आपके मुंह नहीं लगेगा और अगर गलती से पहलवान निकल गया, तो सीधा आपका मुंह ही तोड़ देगा, सब चिल्ला चोट धरी रह जाएगी। कई बार मन मसोसकर रह जाना पड़ता है, ऐसी चिल्ला चोट पर। ।

अक्सर कुछ लोग, बिना गाली गुप्ता के, कभी साधारण तो कभी आक्रामक चिल्ला चोट की सहायता से दफ्तरों में अपना काम जल्दी करवा लेते हैं, तब उनके चेहरे पर एक विजयी मुस्कान स्पष्ट देखी जा सकती है।

घरों में सौ दिन सास के अब लद गए। बिना बात के छोटी बहू इतनी चिल्ला चोट मचाती है, कि सबकी नाक में दम कर देती है।

समझदारी से गृहस्थी चलती है, बेटा तो बेटा, ससुर जी भी सास को ही समझाते हैं, वह तो घर तोड़ने के लिए उधार बैठी है, तुम ही गम खा लो, नहीं तो तलाक की नौबत आ जाएगी। ।

संसद हो या सड़क, घर हो या दफ्तर, अगर अपनी झांकी जमानी हो, सामने वाले को नीचा दिखाना हो, अपना गलत काम करवाना हो, तो एंटायर चिल्ला चोट में डिग्री अथवा डिप्लोमा प्राप्त करने के लिए लिखें या मिलें ;

निःशुल्क कोचिंग

चिल्ला चोट विशेषज्ञ !!

(नोट: हमारी कोई शाखा नहीं है।)

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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