श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “कार निषेध दिवस”।)
अभी अभी # 165 ⇒ कार निषेध दिवस… श्री प्रदीप शर्मा
NO CAR DAY •
आज हमारी स्थिति ऐसी हो गई है कि हम एक दिन बिना प्यार के तो रह सकते हैं, लेकिन बिना कार के नहीं रह सकते। एक समय था जब पैसा या प्यार जैसी फिल्में बनती थी, आज अगर कार और प्यार में से किसी एक को चुनना पड़े, तो इंसान को दस बार सोचना पड़ेगा। हमने तो आजकल, दे दे प्यार दे की तर्ज पर, लोगों को आपस में, दे दे कार दे, कार दे, कार दे, कार दे कहते हुए, कार मांगते भी देखा है।
ट्रैफिक जाम और प्रदूषण का हाल ये देखा कि, एक दिन के लिए कार छोड़ दी मैने। एक समय था, जब हर तरफ आदमी ही आदमी नजर आता था, और आज यह नौबत आ गई कि हर तरफ कार ही कार। हर चौराहे पर बत्तियां बदलती रहती हैं और ट्रैफिक केंचुए की तरह रेंगता रहता हैं। चारों ओर से हॉर्न की कर्कश आवाज यही दर्शाती है कि हमने अपना मानसिक संतुलन खो दिया है।।
अंततोगत्वा, ये तो होना ही था ! नो व्हीकल जोन की तरह आप इसे नो व्हीकल डे भी कह सकते हैं। लेकिन वाहन बिन सब सून ! बड़ी ज्यादती हो जाती है। वाहन में तो दो पहिया, तीन पहिया, सिटी बस, स्कूल बस, सभी आते हैं। चलिए, इसे कार तक ही सीमित करते हैं। एक दिन बिना कार का। अब आपको, नो कार डे, से ही समझौता करना पड़ेगा। इसके हिंदी में अनुवाद के चक्कर में मत पड़िए, इंडिया भारत हो गया, यही क्या कम है।
आज की स्थिति में आखिर कार क्यूं, जैसा प्रश्न पूछना ही बेमानी है। जो अपने परिवार से करे प्यार, वो कार से कैसे करे इंकार। जब हम दो थे, तो आराम से, आसानी से वेस्पा, लैंब्रेटा, राजदूत और हीरो होंडा मोटर साइकिल से काम चला लेते थे। हमने भी देखे हैं, चल मेरी लूना के दिन।।
फिर हम दो से, हमारे दो हुए। पहिए भी दो से चार हुए। बाल बच्चों वाला घर, कार का क्या, बेचारी घर के बाहर ही सो जाती है रात को। ठंड, गर्मी, बरसात, कोई शिकायत नहीं, बस सुबह कपड़ा मार दो, चमक जाती है। इंसान होती तो चाय पानी करवा देते, पर उसकी खुराक तो डीजल पेट्रोल है। सबको पेट काट काटकर पालना पड़ता है।
क्या जिनके पास कार नहीं, उनका परिवार नहीं, या वे बेकार हैं। अपनी अपनी हैसियत है, जरूरत है, मेहनत करते हैं, पसीना बहाते हैं, हर महीने कार की किश्त चुकाते हैं, तब कार का शौक पालते हैं।
अपना अपना नसीब है। आप क्यों हमसे जलते हैं।।
नो कार डे को आप बेकार डे नहीं कह सकते। हफ्ते पंद्रह दिन में, कुछ लोग उपवास रखते हैं, अन्न की जगह कुछ और खा लेते हैं। एक पंथ दो काज ! थोड़ा धरम करम, थोड़ा व्रत उपवास, पिज़्ज़ा बर्गर पास्ता की छुट्टी। क्या कहते हैं उसे, संयम। कुछ लोगों से तो कंट्रोल ही नहीं होता।
महीने पंद्रह दिन में अगर कार से भी परहेज किया जाए तो कोई बुरा नहीं।
अन्य साधन उपलब्ध तो हैं ही। बस अगर सामूहिक इच्छा शक्ति हो, तो हमारी बहुत ही समस्याओं का निदान तो हम ही कर लें।
जिस तरह बूंद बूंद से घड़ा भरता है, आपके एक दिन कार नहीं चलाने से भी बहुत फर्क पड़ सकता है।
बिना कार कहें, बहिष्कार कहें, आप चाहें तो इसे नो कार डे भी कहें, सब चलता है।।
बढ़ती कारों की संख्या आप रोक नहीं सकते। नए वाहनों के क्रय पर भी आप बंदिश भी नहीं लगा सकते। गैरेज का पता नहीं, कार सड़कों पर रखी जा रही हैं। कार पार्किंग की समस्या भी आज की सबसे बड़ी समस्या है।
जहां सामान खरीदना है, वहीं कार खड़ी कर दी। दो कदम पैदल चल नहीं सकते। पूरी सड़कें गलत पार्किंग से भरी रहती हैं, ट्रैफिक तो बाधित होता ही है। प्रशासन चालान काट काट कर हार गया। भगवान भरोसे शहर की ट्रैफिक व्यवस्था है। फिर भी हम खुश हैं, क्योंकि हमारे पास तो कोई कार ही नहीं है।
एवरी डे इज अ, नो कार डे।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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