श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका व्यंग्य- “चिंतन शिविर“।)
शिविर के वैसे तो कई अर्थ होते हैं, अस्थायी कैंप, डेरा, पड़ाव टैंट, छावनी, और अड्डा। कालांतर में छावनी, डेरा और अड्डा स्थायी हो जाते हैं। दिल्ली में डेरा काले खां भी स्थायी है और सराय रोहिल्ला भी। हमारे शहर में भी बहुत पुराना जूनी इंदौर गाड़ी अड्डा है। और छावनी की तो बस पूछिए ही मत ! अंग्रेज़ चले गए, छावनी छोड़ गए।
जिस स्थान पर चिंतन किया जा सके, उसे चिंतन शिविर कहा जा सकता है। चिंतन हमारे नियमित जीवन का प्रमुख अंग है। सुबह उठते ही सबसे पहले जो कर्म होता है, उसे नित्य कर्म कहते हैं। जो मुक्त चिंतन के आदी होते हैं, वे सदियों से खुले में शौच करते आ रहे हैं। युग बदलेगा, सोच बदलेगा।
युग भी बदला, शौच का तरीका भी बदला। शांतता, घर घर चिंतन शिविर, नई सोच, खुलकर शौच। बद्ध मल से कोई बुद्ध नहीं बनता।।
जो संबंध चिंतन का चिंतन शिविर से है, वही संबंध सोच का शौच से है। जिनका संकीर्ण सोच होता है, उन्हें कब्जियत होती है। उनके लिए दुनिया गोल नहीं, ईसबगोल है। जिन्हें अधिक फिक्र होती है, वे पहले फिक्र को धुएं में उड़ाते हैं, लेकिन फिर भी बात नहीं बनती। गुटका, चाय और डाबर का लाल मंजन, सब बेकार, महज मनोरंजन।
शौच, सोच का नहीं, कर्म का विषय है। सकारात्मक सोच का परिणाम भी सकारात्मक ही निकलता है। एक अच्छी शुरुआत से आधा काम हो जाता है।
A good start is half done. शेक्सपियर ने भी तो यही कहा है ; All is well that ends well.
अंत भला सो सब भला।।
कुछ लोगों के लिए यह चिंतन शिविर युद्ध शिविर से कम नहीं होता। हम तो जब भी शिविर में जाते थे, यही कहकर जाते थे, पाकिस्तान जा रहे हैं।
इधर सर्जिकल स्ट्राइक, उधर हमारी फतह। बड़ी कोफ़्त होती थी, जिस दिन युद्ध विराम की घोषणा हो जाती थी। सब करे कराए पर पानी फिर जाता था।
वाचनालय तो खैर वह पहले से ही था, जब अखबार घर में कहीं नज़र नहीं आता था, तो घर के सदस्य समझ जाते थे, जब तक कोई हल नहीं निकलेगा, अखबार बाहर नहीं आएगा। हमारा चिंतन शिविर तो एक तरह का अध्ययन कक्ष ही बन गया था। घर पोच वाचनालय की तरह, जासूसी उपन्यास वहां आसानी से उपलब्ध हो जाते थे। बस सस्पेंस के बाद क्लाइमैक्स का इंतजार रहता था।।
आजकल चिंतन शिविर अत्यधिक आधुनिक हो गए हैं। सृजन और विसर्जन दोनों का कार्य यहां बड़ी कुशलतापूर्वक संपन्न होता है। लेकिन जितना शौच को सुलभ बनाने की कोशिश की जा रही है, उतनी ही लोगों की सोच बिगड़ती जा रही है।
चिंतन शिविर का मुख्य उद्देश्य निरोगी काया और निर्मल मन ही तो है। केवल शौचालय ही नहीं, अपनी सोच भी बदलें। आपके विचारों से आपके चिंतन शिविर की बू नहीं, खुशबू आना चाहिए।
चिंतक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय।।
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© श्री प्रदीप शर्मा
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