श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “चीज़ सैंडविच “।)
अभी अभी # 167 ⇒ चीज़ सैंडविच… श्री प्रदीप शर्मा
जी हां ! आज हमें सैंडविच की नहीं,सैंड विच जो चीज़ है,उसकी चर्चा करनी है। वैसे चीज़ हो, अथवा सैंडविच,दोनों के बारे में आज की पीढ़ी की राय शायद यही हो, तू चीज बड़ी है मस्त मस्त।
चीज़ का एक जोड़ीदार भी है,जिसे पनीर कहते हैं। पनीर के बारे में इतनी ही जानकारी पर्याप्त है, कि जब भी कभी घर में दूध फट जाता था, मां झट से उसका पनीर बना लेती थी। ।
हमारा बचपन कभी ब्रेड बटर से बाहर ही नहीं आया। तब हमने सांची और अमूल का तो नाम भी नहीं सुना था। एक जोशी दूध दही भंडार था,जहां से दूध, दही और घी आ जाता था। कृष्णपुरे पर एक भावे की डेयरी थी,जहां दूध दही और घी के अलावा क्रीम, पनीर और चक्का भी मिलता था। पनीर का हमारे घर में प्रवेश वर्जित था, हां सक्रांति पर श्रीखंड के लिए चक्का ज़रूर लाया जाता था।
पनीर का स्वाद हमने कॉलेज में जाने के बाद,सरवटे बस स्टैंड के सामने जनता और स्टैंडर्ड होटल में,पहली बार मटर पनीर खाते वक्त चखा। हरे हरे पालक की ग्रेवी में तैरता हुआ पनीर भी पहली बार ही देखा। ।
घर में तो अक्सर हम दाल रोटी खाकर ही प्रभु का गुण गाया करते थे। एक बार अप्सरा होटल में काजू कढ़ी क्या खाई, यकीन मानिए,सब्जी में काजू को तैरती देख,हमें आश्चर्य भी हुआ,और बिना प्यास के,मुंह में पानी भी आ गया। घर जाकर बड़े उत्साहपूर्वक मां को बताया। मां शांत रही,बस इतना ही बोली,कल सौ ग्राम काजू और थोड़ी खसखस ले आना,घर पर ही बना दूंगी।
तब तक पनीर के साथ चीज़ के जलवे भी कम चर्चा में नहीं थे। लेकिन हमें चीज़ में आज भी वह खूबी नजर नहीं आई,जो घी और मक्खन में है। पनीर भी आप हफ्ते में एक दो बार खा लो,तो ठीक,लेकिन पनीर को ही हर जगह ओढ़ना और बिछाना,हमें बिल्कुल पसंद नहीं। ।
आज की धारणा यह है कि घी और मक्खन की तुलना में चीज़ और पनीर अधिक स्वास्थ्यवर्धक हैं और इनमें अपेक्षाकृत फैट भी कम होता है। लेकिन स्ट्रीट फूड की हालत यह है कि मक्खन,पनीर और चीज़ की जुगलबंदी के बिना स्वाद का तड़का ही नहीं लगता।
पिज़्ज़ा हो या बर्गर,सैंडविच हो या चिली पनीर,अगर उस पर ढेर सारा चीज़ और पनीर किसकर डाले बिना तो उसका ड्रेसिंग पूरा ही नहीं होता। मक्खन, चीज़ और पनीर में डूबी डिश जब पेट में जाती होगी,तो अपना कमाल तो बताती ही होगी। ।
आज चीज़ से याद आया,जब हम छोटे थे,और रोते रोते पूरा घर सिर पर उठा लेते थे, तो हमारी बड़ी बहन(जो खुद,तब बहुत छोटी थी) हमें गोद में टांगकर बहलाने बज्जी,याने बाजार ले जाती थी और हमें कुछ चिज्जी यानी चीज दिलाती थी,क्या होती थी,वह चीज,आज की भाषा में आप चाहें तो उसे लॉलीपॉप कह सकते हैं,गोली बिस्किट, जो भी मिल जाए,बालहठ पूरा हो जाता था।
आज हठात् इस चीज़ के जिक्र पर वह चीज भी याद आ गई। बचपन की चीज हो अथवा आज की सजी धजी,गार्निश्ड चीज़ सैंडविच,एक बात तो माननी ही पड़ेगी, जब मुंह में पानी आता है,तो अनायास मुंह से निकल ही जाता है, तू चीज़ बड़ी है मस्त मस्त। ।
© श्री प्रदीप शर्मा
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