श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “महेंद्र कपूर / मो.रफी”।)
अभी अभी # 169 ⇒ महेंद्र कपूर/मो.रफी… श्री प्रदीप शर्मा
26 सितम्बर का दिन सदाबहार अभिनेता देवानंद का था क्योंकि संयोग से 26 सितम्बर को ही उनका सौंवा जन्मदिवस भी था। 27 सितम्बर को प्रसिद्ध पार्श्वगायक श्री महेंद्र कपूर की पुण्य तिथि है। संगीत और अध्यात्म में एक रिश्ता गुरु शिष्य संबंध का भी होता है। फिल्मों में घोषित तौर पर कोई गुरु शिष्य नहीं होता। यहां अक्सर गुरु गुड़ रह जाता है, और चेला शक्कर। अघोषित रूप से रफी साहब और महेंद्र कपूर के बीच गुरु शिष्य का संबंध था। आज इसी बहाने, लीक से हटकर हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे।
अक्सर कलाकारों के संघर्ष के दिनों की चर्चा होती है।
किसने कितने पापड़ बेले।
आम तौर पर जैसा होता है, महेंद्र कपूर को भी कम उम्र से ही संगीत में गहन रुचि थी और उन्होंने संगीत की विधिवत शिक्षा भी उस्तादों से ग्रहण की थी। उनके ही अनुसार वे एक अच्छे खाते पीते परिवार से थे।।
उनके संगीत कैरियर का एक रोचक किस्सा उनकी ही जबानी। वे शायद तब इतने बड़े भी नहीं हुए थे कि गायकी के क्षेत्र में अपने पांव जमा सकें। एक बार उन्होंने अपने ड्राइवर से बातचीत के दौरान पूछ लिया, क्या वह किसी ऐसे गायक को जानता है, जो गायन और संगीत की बारीकियों को जानता, समझता हो। ड्राइवर ने जवाब दिया, मैने रफी साहब का घर देखा है। और कुछ ही देर बाद दोनों की भेंट भी हो गई।
लेकिन जब बात विधिवत शिक्षा की आई तो रफी साहब ने साफ साफ कह दिया, अभी तुम छोटे हो, हां अगर अपने माता पिता को ले आओगे तो तुम्हें हम अपना शिष्य बना लेंगे। इस प्रकार माता पिता की सहमति के पश्चात् ही दोनों के गुरु शिष्य संबंध की नींव पड़ी।
लेकिन यह शिक्षा केवल कुछ महीनों की ही थी, क्योंकि महेंद्र कपूर को एक गायन स्पर्धा में भाग लेना था, जिसके निर्णायक मंडल में सर्वश्री नौशाद, ओ पी नय्यर, और कल्याण जी आनंद जी जैसे दिग्गज संगीत निर्देशक शामिल थे, और उन्होंने यह भी तय किया था कि जो भी विजेता गायक होगा, उसे वे अपनी फिल्म में गाने का मौका देंगे। महेंद्र कपूर के सितारे बुलंद निकले, वे अपने गुरु के आशीर्वाद से प्रतियोगिता में विजयी भी हुए और उन्हें नवरंग, सोहनी महिवाल, बहारें फिर भी आएंगी और उपकार जैसी फिल्मों में अपनी गायकी का डंका बजाने का अवसर भी मिला।।
महेंद्र कपूर साहब की आवाज रफी साहब से इतनी मिलती थी, कि फिल्म सोहनी महिवाल के गीत में तो श्रोताओं को भ्रम हो गया कि कहीं यह रफी साहब की आवाज तो नहीं। यह हमारे संगीतकारों का ही कमाल होता है जो हीरे को तराशना जानते हैं। कपूर साहब ने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
गुरु शिष्य संबंध एक नितांत व्यक्तिगत मामला है लेकिन यकीन नहीं होता कि एक पेशेवर कलाकार कैसे अपने शिष्य के साथ सिर्फ इसलिए नहीं गाता कि न केवल उनका संबंध गुरु शिष्य का है, अपितु उनकी आवाज भी आपस में मिलती है।।
और कमाल देखिए, वाकई रफी साहब और महेंद्र कपूर ने साथ में कोई युगल गीत नहीं गाया केवल एक दो अपवाद को छोड़कर।
सभी जानते हैं बी आर चोपड़ा और मनोज कुमार के पसंदीदा गायक महेंद्र कपूर ही थे। ओ पी नय्यर जब रफी साहब से खफा हुए, तो रफी साहब के चेले महेंद्र कपूर ही काम आए।
होता है, जब रफी लता की अनबन होती है तो सुमन कल्याणपुर की बन आती है।
रफी साहब के विकल्प महेंद्र कपूर ही तो थे। वे रफी साहब की आवाज ही नहीं, आत्मा भी थे। जब भी रफी साहब का व्यस्त शेड्यूल होता, संगीतकार महेंद्र कपूर साहब की ओर रुख करते, और रफी साहब ही की तरह विनम्र और खुशमिजाज और वही गायकी का अंदाज, उनके गीतों में भी नजर आता।।
कितने खुशनसीब थे महेंद्र कपूर कि उनको रवि जैसा संगीतकार मिला जिसने साहिर लुधियानवी के गीतों को इतनी मधुर धुनों में पिरोया कि साहिर की रुह उनकी आवाज में बस गई। जब भी महेंद्र कपूर साहब के कालजयी नगमों का जिक्र होगा, साहिर का नाम उस फेहरिस्त में सबसे ऊपर होगा। आज उनकी पुण्यतिथि पर गुरु शिष्य दोनों को नमन करते हुए मधुर स्मरण ;
नीले गगन के तले
साहिर, महेंद्र कपूर और
रफी साहब का प्यार पले ..!!
© श्री प्रदीप शर्मा
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