श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “आस्था के आयाम“।)
अभी अभी # 170 ⇒ आस्था के आयाम… श्री प्रदीप शर्मा
आस्था, आत्मा का आलंबन है! अपने अलावा किसी और के अस्तित्व का इस्तेकबाल है आस्था। आस्था एक ऐसा कपालभाति व्यायाम है, जिसमें अपने आराध्य को सुबह-शाम श्रद्धा की अगरबत्ती लगाई जाती है, धूप दी जाती है, अनुलोम-विलोम की तरह उसका मन ही मन गुणगान किया जाता है, और जब यह आस्था भक्ति में परिवर्तित हो जाती है, तो भस्रिका की तरह साँसों में गतिशील हो जाती है।
आस्था आत्मा का सुबह का नाश्ता है। प्रातः उठते ही जब हम किसी अज्ञात शक्ति को नमन करते हैं, तो यह एक तरह से यह हमारी अस्मिता और अहंकार का समर्पण है। कोई तो है, जो हमारे हम से कम नहीं।।
यह आस्था की सुबह है! एक बार मुँह धोने के बहाने देखा, और आस्था को आसक्ति ने ढँक लिया! यह अनजाने ही होता है। अपना चेहरा किसी को बुरा नहीं लगता। बढ़ती उम्र के साथ चेहरे पर छाई झुर्रियों को, सौंदर्य प्रसाधनों से छुपाया जाता है, सफ़ेद होते बालों पर हिज़ाब लगाया जाता है। यह खुद पर खुद का विश्वास है। एक तरह का आत्म-विश्वास है, जिजीविषा है, जिसका एक ठोस आधार है, हम किसी से कम नहीं।
आस्था के कई सोपान हैं! बचपन में जो माता-पिता, गुरुजन और अपने इष्ट के प्रति है वही आस्था उत्तरोत्तर विकसित व पल्लवित हो, आदर्श एवं संस्कार का रूप धारण कर लेती है। यही आस्था उसे आत्म-कल्याण हेतु किसी मार्गदर्शक, रहबर अथवा सद्गुरु के चरणों तक ले जाती है।।
जब जीवन में कभी आस्था पर चोट पहुँचती है, मनुष्य का नैतिक धरातल डगमगा जाता है। जब किसी की आस्था के साथ खिलवाड़ होता है, उसकी आत्मा पर ज़बर्दस्त आघात पहुंचता है। मनुष्य के नैतिक पतन का मुख्य कारण उसकी आस्था का कमज़ोर होना है।
ऐसी परिस्थिति में आस्था का स्थान अनास्था ले लेती है। जो आस्था दुःख के पहाड़ को गिरधर गोपाल की भाँति एक अंगुली पर धारण करने में सक्षम होती है, अनास्था के बादल के छाते ही रणछोड़ की तरह मैदान से भाग खड़ी होती है। आप सब कुछ करें, लेकिन जीवन में कभी किसी की आस्था के साथ खिलवाड़ ना करें। आस्था ही आकाश है, आस्था ही जीवन! आस्था अमूल्य है, अमिट है।
आस्था ही ईश्वर है।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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