श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “पाठक, लेखक, श्रोता और मूक दर्शक“।)
अभी अभी # 172 ⇒ पाठक, लेखक, श्रोता और मूक दर्शक… श्री प्रदीप शर्मा
एक पाठक और लेखक के लिए पढ़ना लिखना जरूरी है, श्रोता पर यह शर्त लागू नहीं होती। शाब्दिक अर्थ में जो लिखता है, वह लेखक कहलाता है, और जो पढ़ता है, वह पाठक कहलाता है। हमारे देश में जितने पाठक हैं, उतने लेखक नहीं। सभी लिखने वाले लेखक नहीं कहलाते, जिन्हें पढ़ा जाता है, वे ही लेखक कहलाते हैं।
जो सिर्फ सुनता है, वह श्रोता कहलाता है। रेडियो सुनने की चीज है, देखने की नहीं ! वही श्रोता जब किसी सभा अथवा गोष्ठी में जाता है, अथवा फिल्म अथवा टीवी देखता है, तो दर्शक बन जाता है। लेकिन जब से यह मोबाइल आया है, हर उपभोक्ता लेखक, पाठक, श्रोता, दर्शक और न जाने क्या क्या बन बैठा है?
एक श्रोता और दर्शक का पढ़ा लिखा होना जरूरी नहीं है जिसे आम भाषा में आम श्रोता और आम दर्शक ही कहते हैं। इसी तरह एक आम पाठक भी होता है और सुधी पाठक भी। वैसे सुधी तो कोई श्रोता भी हो सकता है। एक आम पाठक पर आप कोई लेखक थोप नहीं सकते। लेकिन एक बेचारे श्रोता और दर्शक पर तो कुछ भी थोपा जा सकता है। मन में वह कुछ भी कहे, लेकिन उससे अपेक्षा तालियों की ही होती है।
हर पढ़ा लिखा इंसान लेखक नहीं बन सकता, लेकिन एक लेखक भी कहां बिना पढ़े लिखे लेखक बना है। वैसे कहा तो यह भी जाता है, इंसान बनने के लिए भी पढ़ना लिखना जरूरी है। ।
हम सब पढ़े लिखे इंसान हैं, कोई पाठक, कोई लेखक, कोई श्रोता तो कोई दर्शक ! डार्विन की विकास यात्रा को हमने पहले बंदर से मानव बनते देखा, और आज इक्कीसवीं सदी में गूगल ऐप ape से उसे और एक बेहतर इंसान बनते देख रहे हैं।
एक अंगुली भर दबाने की दूरी पर पूरी दुनिया, पूरा शब्दकोश, पूरा नेशनल ज्योग्राफी, दुनिया के किसी भी कोने से कनेक्टिविटी, वीडियो कॉलिंग, दृश्य श्रव्य के सभी खजाने आपकी यू ट्यूब में संग्रहित, यानी ज्ञान का भंडार और मनोरंजन का खजाना आपके कदमों में नहीं, आपकी मुट्ठी में। ।
अब हमें एक बेहतर इंसान बनने से कोई नहीं रोक सकता। क्या यह मानव सभ्यता अभी और अधिक सभ्य होगी। प्रेम, नैतिकता, ईमानदारी, नेकी और ईमान में हम कितने आगे हैं, यह भी अगर कोई ऐप के जरिए पता चल जाए, तो हम समझेंगे हमारा जीवन धन्य हुआ, हम गंगा नहाए।
डर है, समय हमें यह सोचने पर मजबूर ना कर दे कि कहीं हमारे कदम विकास की जगह विनाश की ओर तो नहीं जा रहे। उधर अंधाधुंध आधुनिकीकरण और पर्यावरण की उपेक्षा से प्रकृति भी कुपित है और इधर कहीं हमने बच्चों को हाथ में जादू के खिलौने की जगह कोई हथियार तो नहीं थमा दिया। क्या हम कहीं अधिक पढ़, लिख तो नहीं गए …!!
© श्री प्रदीप शर्मा
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