श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “पितृ पक्ष”।)

?अभी अभी # 173 ⇒ पितृ पक्ष? श्री प्रदीप शर्मा  ?

आज हम सत्ता पक्ष अथवा विपक्ष की नहीं, केवल पितृ पक्ष की चर्चा करेंगे। पक्ष पखवाड़ा को भी कहते हैं। वैसे अगर पक्ष की बात की जाए, तो पक्ष दो होते हैं, शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष और अगर निष्पक्ष होकर सोचा जाए तो पितृ पक्ष की तरह मातृ पक्ष भी होता है।

पितर् शब्द में सब कुछ समाहित है ठीक तरह, जिस तरह परम पिता में, संपूर्ण ईश्वर तत्व समाया हुआ है। उसी ईश्वरीय शक्ति को आप चाहें तो शक्ति भी कह सकते हैं और मातृ शक्ति भी।।

बोलचाल की भाषा में मातृ पक्ष को हम ननिहाल कहते हैं, जहां कभी नाना नानी, और मामा मामी का निवास होता था। वैसे एक जमाने में, मामा के राज में, हमारे भी बड़े ठाठ थे, क्योंकि हमारी मामी उस समय किचन क्वीन जो थी। लेकिन ननिहाल हो अथवा किसी का पीहर, केवल यादें भर रह जाती हैं। बाबुल मोरा नैहर छूटो ही जाए।

यानी हमारा असली घर पिता का ही घर होता है, क्योंकि पिता से ही वंश चलता है। समाज शास्त्र में इसे पितृसत्तात्मक परिवार कहते हैं। पोते को आजकल पिता से अधिक दादाजी का प्यार मिलने लगा है और दादी मां के नुस्खे आज भी घर घर में आजमाए जाते हैं। ।

इस लोक के अलावा कोई तो और लोक भी होगा। वैसे सात लोकों में भूलोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तपोलोक और ब्रह्मलोक भी शामिल हैं, जिन्हें संक्षेप में हम लोक और परलोक ही कहते हैं।

बस यह आवागमन निर्बाध रूप से चलता रहे, किसी की गाड़ी खराब ना हो, किसी का पेट्रोल खत्म ना हो, किसी का टायर पंचर ना हो, रास्ते में भूख प्यास की परेशानी ना हो,

इसकी चिंता किसको नहीं होती। सरकारी बसों तक में लिखा रहता था, ईश्वर आपकी यात्रा सफल करे।

धूम्रपान वर्जित है।।

बड़ा संजीदा और इमोशनल मामला है, आप किसी को नाराज भी नहीं कर सकते। इसलिए इस पितृ पक्ष में कोई विवाद नहीं, कोई बहस नहीं, कोई मायका ससुराल नहीं, भेदभाव से परे, सभी कर्म निष्काम भाव से, श्रद्धापूर्वक संपन्न किए जाएं, खीर पूड़ी खाई, खिलाई जाए, उनकी स्मृति में दान पुण्य भी किए जाएं।

याद कीजिए, इस शरीर में आपका क्या है ! माता पिता ने आपको जन्म दिया, गुरुओं ने ज्ञान, अपने बड़ों ने संस्कार दिए। जन्म के वक्त तो आप इतने नादान और अबोध थे कि अपना पेट भी खुद नहीं भर सकते थे। जो लिया है, उसका कर्ज तो चुकाना ही है। मिट्टी से लेकर मिट्टी का घर, और घर बाहर उपलब्ध सभी सुविधा और सुविधा प्रदान करने वाले जाने पहचाने और अनजान लोग, वे लौकिक और पारलौकिक शक्तियां जिनको पाकर आज आप फूले नहीं समा रहे, सबका आभार और ऋण चुकाने का पक्ष है यह पितृ पक्ष।

जिस देश की मिट्टी इतनी पावन हो, वहां के पितरों के पुण्य प्रताप की तो बात ही निराली है। वे, उनकी कृपा, आशीर्वाद, प्रेरणा और शक्तियां सदा आपके साथ मौजूद हैं। उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन।।

♥ ♥ ♥ ♥ ♥

© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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