श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “चोट्टा, चुगलखोर”।)
अभी अभी # 188 ⇒ चोट्टा, चुगलखोर… श्री प्रदीप शर्मा
ये शब्द बाल साहित्य के हैं। नंद और यशोदा के लाल के लिए भक्त शिरोमणि सूरदास जी छलिया और माखनचोर जैसे शब्दों का प्रयोग करते नजर आते हैं, जब कि हमारे जमाने के बाल गोपाल एक दूसरे के लिए चोट्टा और चुगलखोर जैसे शब्दों से ही काम चला लेते थे।
जो अंतर चोर और चोट्टे में है, वही अंतर शिकायत और चुगली में है। जागो ग्राहक जागो, अपने अधिकारों के प्रति सजग हों। मिलावट, और चोर बाजारी के खिलाफ आवाज उठाना और शिकायत करना, हर उपभोक्ता का संवैधानिक अधिकार है। लेकिन जब चोर चोर मौसेरे नहीं, सगे भाई बहन हों, तो जागा नहीं जाता, शिकायत नहीं की जाती। वहां तो बस मिलीभगत ही काम आती है। ।
वैसे हमारे वयस्क समाज में ये दोनों शब्द ही शोभनीय नहीं हैं। हमारे संत भी चोर मन की ही बात करते हैं, चोट्टे मन की नहीं। एक भक्त को यह अधिकार तो है कि वह अपने आराध्य से शिकायत करे, अनुनय विनय करे, गिड़गिड़ाए, लेकिन भगवान से भी कभी किसी की चुगली नहीं की जाती।
मैया मोहि दाऊ मोहे बहुत खिझायों
मो से कहत मोल को लीन्हौ
तू जसुमति कब जायौं ?
लेकिन महाराज, यह तो सरासर चुगली है और मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो, तो चोरी और सीना जोरी ! बिल्कुल ऐसा ही हमारे साथ बचपन में होता था। बड़े भाई साहब तो हमेशा डांटते और खाने को दौड़ते थे, लेकिन दीदी से हमारी बहुत घुटती थी। घुटने का मतलब ही होता है, एक दूसरे के काम आना, एक दूसरे की कमजोरियों को छुपाना।
स्कूल में, इंटरवल में कौन गोली, बिस्किट और बर्फ के लड्डू नहीं खाता। जब गला खराब होता तो घर जाकर शामत आ जाती। जरूर कुछ उल्टा सुल्टा खाया होगा। जवाब दो !
मां तो सिर्फ डांटती थी। लेकिन बड़े भैया और पिताजी से बहुत डर लगता था। बहुत कुछ छुपाना पड़ता था एक दूसरे के लिए।।
कभी कभी जब किसी बात पर लड़ाई हो जाती, तो छोटी मोटी गलतियों और वारदातों की चुगली भी कर दी जाती। साथ साथ दूध और दही की मलाई चोरी से खाने का मजा ही कुछ और था। थोड़ी किसी बात को लेकर अनबन हुई, और चुगली शुरू! मां ये भैया चोट्टा है, चोरी से मलाई खाता है।
मां को ऊंठे जूठे से बहुत चिड़ थी, वह भी भड़क उठती, ठहर चोट्टे, तुझे बताती हूं। बेचारा हम जैसा कमजोर इंसान क्या कर सकता था। जब कि मलाई तो हम दोनों भाई बहन मिलकर ही चुराते और खाते थे। मन मसोसकर दीदी को यही कह पाते थे, दीदी आप चुगलखोर हो। आगे से मैं भी आपकी इसी तरह हर बात पर चुगली करूंगा। आपसे कट्टी। ।
इसे मानवीय कमजोरी कहें, अथवा भाई बहन का प्रेम, संकट में वैसे भी सगे ही काम आते हैं। बहुत जल्द हमारा समझौता हो जाता। केवल चोर चोर ही मौसेरे भाई नहीं होते, बचपन में, चोट्टे और चुगलखोर, आपस में भाई बहन भी होते हैं।
आज जब भी बचपन की ऐसी छोटी मोटी घटनाएं याद आ जाती हैं, मन करता है, आज फिर कोई हमारी चुगली करे, हमें चोट्टा कहे। बहुत अर्सा हुआ, चोरी से मलाई नहीं खाई। ।
© श्री प्रदीप शर्मा
संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर
मो 8319180002
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈