श्री प्रदीप शर्मा

(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका ललित आलेख – “व्यंग्य के सरपंच”।)

?अभी अभी # 191 ⇒ व्यंग्य के सरपंच… ? श्री प्रदीप शर्मा  ?

जो अंतर हास्य और व्यंग्य में है, वही अंतर एक पंच और सरपंच में है। पंच और हास्य में एक समानता है, दोनों ही ढाई आखर के हैं। वैसे भी पढ़ा लिखा पंच नहीं मारता, बहुत बड़ा हाथ मारता है। सरपंच और व्यंग्य की तो बात ही अलग है। प्रेमचंद की भाषा में तो पंच ही परमेश्वर है, जब कि व्यंग्य की दुनिया में तो सभी सरपंच ही विराजमान है।

अगर इस अभी अभी का शीर्षक पंच और सरपंच होता, तो कुछ लोग इसे राग दरबारी की तरह पंचायती राज से जोड़ देते। जिन्होंने राग दरबारी नहीं पढ़ी, वे उसे आसानी से संगीत से जोड़ सकते हैं।।

वैसे हास्य का संगीत से वही संबंध है जो व्यंग्य का पंच से है। हाथरस हास्य का तीर्थ ही नहीं, वहां प्रभुलाल गर्ग उर्फ काका हाथरसी का संगीत कार्यालय भी है। छोटे मोटे पंच मारकर कुछ लोग हास्य सम्राट बन बैठते हैं, जब कि व्यंग्य की पंचायत में कई सरपंच रात दिन नि:स्वार्थ भाव से सेवारत हैं।

अकबर के नवरत्नों में पंच प्रमुख बीरबल का वही स्थान था, जो नवरस में हास्य रस का होता है। हमारे आज के जीवन में भी अगर हास्य पंच है तो व्यंग्य सरपंच। जैसे बिना पंच के पंचायती राज नहीं, वैसे ही बिना पंच के हास्य नहीं। बिना सरपंच के कहां पंचायत बैठती है और, बिना व्यंग्य के सरपंच के, कहां व्यंग्य की दाल गलती है।।

जिसके व्यंग्य में अधिक पंच होते हैं, वे व्यंग्य के सरपंच कहलाते हैं। इन सरपंचों के अपने संगठन होते हैं, जिनकी समय समय पर गोष्ठियां और सम्मेलन भी होते हैं। सरपंचों को पुरस्कृत और सम्मानित भी किया जाता है। इनमें युवा वृद्ध, महिला पुरुष सभी होते हैं।

पंच बच्चों का खेल नहीं !

वैसे तो व्यंग्य के पंच अहिंसक होते हैं, लेकिन मार भारी करते हैं। कभी कभी जब पंच व्यंग्य पर ही भारी पड़ जाता है, तो सरपंच के लिए सरदर्द बन जाता है। माफीनामे से भी काम नहीं चलता और नौकरी जाने का अंदेशा तक बना रहता है।।

आए दिन बिनाका गीत माला की तरह व्यंग्य के सरपंचों की सूची जारी हुआ करती है। निष्पक्ष होते हुए भी इसके दो पक्ष होते हैं, शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। हम आचार्य रामचंद्र शुक्ल की नहीं, श्रीलाल शुक्ल की बात कर रहे हैं। कुछ त्यागी सरपंच ऐसे भी हैं, जो सभी प्रपंचों से दूर हैं।

व्यंग्य के सरपंचों में ज्ञान और विवेक की भी कमी नहीं। हलाहल पीने वाले हरिशंकर और जोशीले शरद निर्विवाद रूप से व्यंग्य के सरपंचों में सर्वोपरि हैं।।

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© श्री प्रदीप शर्मा

संपर्क – १०१, साहिल रिजेंसी, रोबोट स्क्वायर, MR 9, इंदौर

मो 8319180002

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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