श्री प्रदीप शर्मा
(वरिष्ठ साहित्यकार श्री प्रदीप शर्मा जी द्वारा हमारे प्रबुद्ध पाठकों के लिए साप्ताहिक स्तम्भ “अभी अभी” के लिए आभार।आप प्रतिदिन इस स्तम्भ के अंतर्गत श्री प्रदीप शर्मा जी के चर्चित आलेख पढ़ सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपका आलेख – “मन लागो मेरो यार अमीरी में”।)
अभी अभी # 198 ⇒ मन लागो मेरो यार अमीरी में… श्री प्रदीप शर्मा
अमीरी और फकीरी दोनों इंसान की ऐसी चरम अवस्थाएं हैं, जहां उसे सुख नजर आता है। अमीरी और फकीरी, दोनों को अगर वरदान माना गया है, तो गरीबी तो बस अभिशाप ही हुई।
अमीर और फकीर, दोनों के पास दौलत होती है, कहीं सुख चैन की और दिल की दौलत होती है, तो कहीं सोने चांदी और महल चौव्वारों की। अमीर अगर दौलत लुटाता है तो वह दानी कहलाता है, और अगर वह सब कुछ लुटा दे, तो दानी नहीं फकीर ही कहलाएगा।।
कर्ण महादानी था, फकीर नहीं। एक दानी का हाथ केवल देने के लिए उठता है, फैलाने, कुछ मांगने के लिए नहीं। कर्ण ने भी सिर्फ दिया ही दिया, जो मांगा सो दिया, लेकिन अपने लिए तो कृष्ण से भी कुछ नहीं मांगा। एक गरीब और गरीबनवाज का रिश्ता दाता और भिखारी का ही तो होता है। सभी ऐश्वर्यों के प्रदाता को आप ईश्वर कहें अथवा भगवान, भिखारी सारी दुनिया, दाता एक राम।
एक गरीब क्या फकीर बनेगा। उसके लिए पहले उसे अमीर बनना पड़ेगा। वह पहले इतना अमीर बन जाए, कि उसके अंदर फकीरी की भावना आ जाए, वह सत्तर करोड़ गरीबों को मुफ्त राशन मुहैया करवाने के बावजूद, जब तेरा तुझको अर्पण वाला भाव रखता है, तो दुनिया उसे मसीहा समझती है, और वह अपने आपको एक फकीर। एक ऐसा फकीर, जो अमीरों को सही राह दिखाता है।।
जो सब कुछ कमाकर लुटा सकता है, उसे फिर एक फकीर बनकर भीख मांगने में भी शर्म नहीं आती, क्योंकि वह तो विरक्त है, एक फकीर है, लोगों के दुख दर्द दूर करेगा, निःस्वार्थ भाव से सेवा करेगा, और कभी भी झोला उठाकर चल देगा।
अमीरी और फकीरी का मिला जुला भाव ही तो आज का सेवा भाव है।
एक नेता आपसे सिर्फ एक वोट मांगता है, और बदले में दुनिया की सारी दौलत आप पर न्यौछावर कर देता है। एक फकीर वादा नहीं करता, सच्चा सौदा करता है। तुम मुझे वोट दो, मैं तुम्हारी दुनिया ही बदल दूंगा।।
मैं ना तो इतना गरीब हूं, कि मुझे भी मुफ्त राशन नसीब हो। ना ही मैं एक इतना संपन्न अमीर हूं, कि दानवीर कर्ण कहलाऊं, अतः फकीरी तो मेरे लिए बड़ी दूर की कौड़ी है। अगर मुझे कुछ लुटाना है, तो उसके पहले कुछ हासिल करना पड़ेगा। एक खाली जेब वाला क्या जेब खर्च करेगा।
फकीर के पास सिर्फ एक झोला होता है, तो क्या उसकी पूरी अमीरी उस झोले में छुपी होती है।
जब कि वास्तव में तो झोला सिर्फ एक फकीर की पहचान है। उसका असली इल्म, और ईमान का झोला तो उसके अंदर होता है, उसके झोले डंडे से किसी को क्या हासिल होगा।।
मैं भी फकीर बनने से पहले अमीर बनना तो चाहता हूं, लेकिन दिखना नहीं चाहता। दुनिया की निगाह में अमीर बनने के लिए पुरुषार्थ और परिश्रम के अलावा कोई रास्ता नहीं। अंदर से अमीरी ज्यादा आसान है। सत्य, प्रेम, सदाचार, संवेदना और सादगी अंदर की वही अमीरी है, जो हमें अल्हड़, फक्कड़ और फकीर बनाती है। अंदर से अमीर हैं हम, लेकिन बस कमी इतनी ही है कि बाहर से फकीर नहीं हम।।
© श्री प्रदीप शर्मा
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